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२ ज्ञानानन्द रत्नाकर। . तुम सुनियत दीनदयालु नाभिके नन्दन । स्वार्थ विन करत निहाल नाभिके नंदन ॥ कानै मेरा प्रतिपाल नाभि के नन्दन ॥ काटोआठो विधि जाल० ॥ १॥ लखि तुम तनु दीप्ति विशाल नाभिके नन्दन ॥ हो कोड़ि काम पामाल नाभिके नन्दन ॥ त्रिभुवन का रूप कमाल नाभिके नन्दन । मानों सांचे दिया डाल नाभिके नन्दन ॥ दर्शन नाझे अब हाल नाभिके नन्दन । काटोआठो विधि जाल नाभिके० ॥२॥ तनु वत्र मई मय खाल नाभिके. नन्दन । ताये सोने सम लाल नाभिके. नन्दन । मल रहित देह सुकुमाल नाभिके नन्दन । बाड़ें ना नख अरु बाल नाभिक नन्दन ॥ यह शुभ अतिशयका ख्याल ना. भिक नंदन । काटो आठो विधि जाल नाभि० ॥३॥जो. तुम गुण माणकी माल नाभिके नंदन । कंठ धरैप्रातःकाल
नाभिके नन्दन । लहि मुर नर सुख तत्काल नाभिके न' न्दन । पावे शिव संयम पाल नाभिके नन्दन ॥ वहे नाथूराम
का सवाल नाभिके नन्दन । काटो आठोविधि जाल नाभिके नन्दन ॥४॥
पारसनाथकी लावनी ॥ २॥ .. तुम सुनियत तारण तरण लाल मामाके । मैं आया थारे शरण लाल बामाके ॥ टेक । तुम त्रिभुवन मानंद करन गउवामाके । विख्यात विरद दुःख हरण