________________
..
श्रीः।
(.ओनमःसिद्ध ज्ञानानन्दरत्नाकर।
द्वितीयभाग।
शाखी। . परमब्रह्म स्वरूप तिहुँ जग भूपहो जंग तारजी ॥
महिमा अनन्त गणेश शेष सुरेश लहंत न पारजी ॥
मैं दास तेरा.चरण चेरा हरो मेरा भारजी ॥ · · जिन भक्त नाथूराम को जन जान पार उतारजी ॥१॥
___ . दौड़। . . प्रभु मैं शरण लिया थारा । जन्म गद मरण हरों म्हारा ॥ प्रभु मैं सहा दुःख भारा । किसी से टरा नहीं टारा।। विरदसुननाथूरामजिनभक्ता भजन थारेमें हुएआशक्तजी
. . श्री ऋषभदेवस्तुति ॥ लावनी ॥ १ ॥ श्री मरुदेवीके लाल नाभिके नन्दन । काटो आगोविधिजा ल नाभिके नन्दन ॥ टेक । सुर अरचे तुम्हें त्रिकाल नाभिकेनन्दन। सौइंद्र नवामें भाल नाभिके नन्दन ॥