________________
ज्ञानानन्द रत्नाकर। . २९
चौपाई। अभिनंदन अभिमान विदारो। मार्दव गुण हिरदे विस्तारो। ज्ञानचक्र प्रभु जब कर धारो। मोह मल्लरिपु क्षणमें मारो।
दोहा। सुमति नाथ प्रभु सुमतिपति , करो कुमति ममनाश ॥ सुमति देहु निज दासको, अनुभव भानु प्रकाश ।। पद्मप्रभुके पद्मचरण हिरदेमें करो मम वास प्रभू ॥ दीजे मुक्ति रसाल काटि विधि जाल रखोनिज पास प्रभू॥ नाथ सुपारस निज पारसप्रभु जन्म बनारस लीनाजी॥ सम्मेदागिरिवर पै ध्यानधर वसु अरिको क्षय कीनाजी॥ चंद्र प्रभुके चरण कमलकी क्रांति देख शशि हीनानी॥ महासेनके लाल नवाऊं भाल परम सुख दीनानी। पुष्पदंत महाराज रखो मम लाज समर करो क्षीणाजी॥ शील शिरोमणि देव करों तुम सेव सफल मम जीनाजी ॥
चौपाई। शीतल नाथ शील सुखधामासिद्धि करो मन वांछितकाम।। श्रेयांन्स श्रीपति गुण ग्राम । जपों नाम थारो वसुजाम॥
।
दोहा।
वास पूज्यके पूज्यपद , वसो हृदय मम आन।। विमल नाथ कलिमल हरो, करो विमल कल्याण ॥ अनंत नाथ दाजै अनंत सुख यह पुजवो मम आश प्रभू ॥ दीजै मुक्ति रसाल काटि विधि जाल रखो निज पास प्रभू॥