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ज्ञानानन्द रत्नाकर। लंकापति राक्षस सुकेत के तीन पुत्र उपजे गुणखान ॥ माली सुमाली और लघु माल्यवान रूपके निधान ।। मालीने निर्घात सुभट को मार लिया लंका निज थान॥ फिर मालीको इंद्र विद्याधरने मारा रण म्यान ॥
चौपाई।
सुमालीके सुत रत्नश्रवाके । भये तीन सुत अतिवलयाँके । रावण आदि तिन्होंने जाके। बांधा इंद्र समरमें धाके ॥
दोहा। रथनूपुर पति इंद्र यह , विद्याधर नरनाथ ॥ नहीं इंद्र सुरलोकका , हारा रावण साथ ॥ नाथूराम वानर वंशिनकी कही कथा यह मनभावन ॥ जिन शासनका लहों आंधार न कल्पित कहों वचन ॥८॥
चौवीस तीर्थकरकी लावनी ॥ १८॥ कीजै नाथ सनाथ जान निज युग चरणनका दास प्रभू ॥ दीजी जै मुक्ति रसाल काटि विधि जाल रखो निजपासप्रभू।
(टेक) प्रथम नमों आदीश्वरको हुए आदि तीर्थ कार प्रभू ।। आदि जिनेश्वर आदीश्वरजी शिव रमनी भार प्रभू ॥ अजितनाथ जीते अजीत वसु दुष्ट कर्म किये क्षार प्रभू ॥ तारण तरण जहाज नाथ किये भक्त भवोदधि पारप्रभू ॥ सम्भवनाथ गाथ गुण प्रगटे सम्भ्रम मेंटनहार प्रभू ॥ ज्ञानभानु अज्ञान तिमर हर तीन जगतिमें सारप्रभू ॥