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ज्ञानानन्द रत्नाकर। यहैं पत्थरकी नाव डुवावनहारे । इन बार २ तोहि भवसागर में पटका । चिरकाल भजनबिन तू त्रिभुवन में भटका ॥२॥तूनरक वेदना दुर्गातके दुःख भूलाानर पशुहोग में मझार अधोमुख झूला । अव किंचित मुखको पाय फिरेतूफूला । माया मरोर से जैसे वायु बघूला ॥ तू मानत ना ही बार २ गुरु हटका । चिरकाल भजन विन तू त्रिभुवनमें भटका ॥३॥ अव वीतराग का मार्ग तूनेपाया। जिनरा ज भजन कर करो सफल नरकाया । तूभ्रमें अकेला यहां अकेला आया ॥ जावेगा अकेला किसकी ढूढे छाया ॥ कहें नाथूराम शठक्यों ममता में अटका। चिरकाल भजन बिनतू त्रिभुवन में भटका ॥१॥ .
(शाखी) प्रथम नमों आरेहंत हरे जिन चारि घाति विधि ॥ बसु विधि हा सिद्ध नमों देहि अष्ट ऋद्धि सिधि॥ नमो शूर गुण पूर नमों उवझाय सदा जी॥ नमों साधु गुण गाध व्याधि ना होय कदाजी ।।.
(दौड़) पंच पद येही मुक्ति के मूल । जपो जैनी मत जावो भूल॥ नाम जिनके से शेश होफूल। करें निंदा तिनकेशिरधूल ॥ नाथूराम यही पंचनवकाराकंठ धर तरो भवोदधि पारजी॥
नाथूराम यही
कार की लावना बोकंठ धरें।
नमो कारके पांचोपद पेंतिस अक्षर जो कंठ धरें।