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बुधजन - सतसई
अभी तक आपके जन्मका समय तथा वाल्यकालका
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हाल प्राप्त नहीं हुआ है, केवल इतना पता लग पाया है, कि आपने विद्याध्ययन पं० मांगीलालजीके पास किया था । जो टिक्कीवालोंके रास्ते में रहते थे । जैनधर्मके प्रति बाल्यकाल से ही आपकी भक्ति थी । आप श्रावक के पटावश्यकोंको यथाशक्ति पालते थे । आप दीवान अमरचन्द्रजीके मुख्य मुनीम थे। दीवानजी आपके कार्यसे सदैव सन्तुष्ट रहते थे, और आपपर पूर्ण विश्वास रखते थे । वे जो कुछ नवीन कार्य करते उसमें आपसे अवश्य सलाह ले लेते थे | दीवानजी प्रायः अपने खास काम इनकी अध्यक्षतामें ही कराते थे । एक बार दीवानजीने एक जैनमन्दिर बनवानेके लिये कहा तो आपने आज्ञा पाते ही एक की जगह दो मन्दिर बनवाना आरम्भ कर दिया । हमारे चरितनायककी यह हार्दिक इच्छा थी, कि इन दोनों मन्दिरोंपर दीवानजीका ही नाम रहे । इनको दो मन्दिर बनवाते देख कई लोगोंने दीवानजी से कविवरके विरुद्ध चुगली खाई और कहा कि देखिये, आपका गुमास्ता कैसा नीच कार्य कर रहा है । आपने तो उसको एक मन्दिर बनवानेका हुक्म दिया था, लेकिन वह दो बनवा रहा है, और दूसरे मन्दिरके लिये वह
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