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जयपुर निवासी कविवर श्रीभदीचन्द्रजी (बुधजननी) संक्षिप्त परिचर्य
चा
जैन - साहित्य के इतिहास में जितना गारव जयपुर ( जैनपुर ) नगरको प्राप्त है, उतना शायद ही किसी अन्य नगरको हो । जयपुर राज्यका इतिहास इस बात का साक्षी है ।
मोक्षमार्गप्रकाशक के रचयिता विद्वद्वर्य पं० टोडरमलजी तथा न्याय और सिद्धांतके विद्वान् पं० जयचन्द्रजीको कौन नहीं जानता ? ये दोनों महापुरुष मी इसी नगर के निधि थे | परन्तु शोकका विषय हैं, कि आज उन उन विद्वानोंका देश तथा धर्मकी वलि-वेढीपर हॅसते हॅमते ग्राण दे देनेवाले सैकड़ों जैन बीका नाम लुप्तप्राय हो रहा है । सचमुच यह माहित्यिक हा एक स्वाभिमानी जैनीके लिए वज्राघातसे भी अधिक दुःखप्रद है । समाज और साहित्यका कितना घनिष्ट सम्बन्ध है, इसे कौन नहीं जानता, जिस समाजका साहित्य नष्ट हो चुका हैं उस समाजका अन्त भी निकट ही समझिये ।