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गोम्मटसार। अङ्कुर उत्पन्न करनेकी शक्ति नष्ट नहीं हुई है, और जिनमें या तो वही जीव आकर उत्पन्न हो जो पहले उसमें था, या कोई दूसरा जीव कहीं अन्यत्रसे मरण करके भाकर उत्पन्न हो, और मूल कन्द आदि जिनको कि पहले सप्रतिष्ठित कहा है वे भी अपनी उत्पत्तिके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्तपर्यन्त अप्रतिष्ठित प्रत्येक ही रहते हैं। __इस प्रकार प्रत्येक और साधारणके भेदसे दो प्रकारकी वनस्पतियों में से प्रत्येकका वर्णन करके अब साधारणका वर्णन करते हैं।
साहारणोदयेण णिगोदसरीरा हवंति सामण्णा । ते पुण दुविहा जीवा बादरसुहमात्ति विण्णेया ॥ १९॥ साधारणोदयेन निगोदशरीरा भवन्ति सामान्याः।।
ते पुनर्द्विविधा जीवा बादरसूक्ष्मा इति विज्ञेयाः॥ १९० ॥ अर्थ-जिन जीवोंका शरीर साधारण नामकर्मके उदयसे निगोदरूप होजाता है उनही को सामान्य या साधारण कहते हैं । इनके दो भेद हैं, एक बादर दूसरा सूक्ष्म । भावार्थ-साधारण नामकर्मके उदयसे इस प्रकारका जीवोंका शरीर होता है कि जो अनन्तानन्त जीवोंको आश्रय दे सकें । इस सरीरमें एक मुख्य जीव नहीं रहता; किन्तु अनन्तानन्त जीव समानरूपसे रहते हैं । अत एव इनका नाम सामान्य या साधारण जीव है । इनके दो भेद हैं, एक बादर दूसरा सूक्ष्म ।
साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणियं ॥ १९१ ॥
साधारणमाहारः साधारणमानापानग्रहणं च ।
साधारणजीवानां साधारणलक्षणं भणितम् ॥ १९१ ॥ अर्थ—इनका ( साधारण जीवोंका ) साधारण ( समान ) ही तो आहार होता है, और साधारण ही श्वासोच्छासका ग्रहण होता है । साधारण जीवोंका लक्षण साधारण ही परमागममें कहा है । भावार्थ-साथ ही उत्पन्न होनेवाले जिन अनन्तानन्त ( साधारण) जीवोंकी आहारादिक पर्याप्ति और उनके कार्य सदृश और समान कालमें होते हों उनको साधारण कहते हैं।
जत्थेकमरइ जीवो तत्थ दु मरणं हवे अणंताणं । बक्कमइ जत्थ एको बक्कमणं तत्थ णंताणं ॥ १९२ ॥ यत्रैको म्रियते जीवस्तत्र तु मरणं भवेत् अनन्तानाम् ।
प्रक्रामति यत्र एकः प्रक्रमणं तत्रानन्तानाम् ॥ १९२ ॥ अर्थ-साधारण जीवोंमें जहां पर एक जीव मरण करता है वहांपर अनन्त जीवोंका
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