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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
प्रमाण पल्यके असंख्यात में भाग प्रमाण है । भावार्थ -- ऐशान स्वर्गसे आगे सानत्कुमार माहेन्द्र खर्गके देवोंका प्रामाण जगच्छ्रेणीमें जगच्छ्रेणी के ग्यारहमे वर्गमूलका भाग देनेसे जितना लब्ध आवे उतना ही है । इसही प्रकार जगच्छ्रेणीके नवमे वर्गमूलका जगच्छेणीमें भाग देने पर जो लब्ध आने उतना ब्रह्म ब्रह्मोत्तर स्वर्गके देवोंका प्रमाण है, और सातमे बर्ग - मूल ( जगच्छ्रेणीका ) का जगच्छ्रेणीमें भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना लान्तव कापिष्ठ स्वर्गके देवोंका प्रमाण है । पांचमे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना शुक्र महाशुक्र स्वर्गके देवोंका प्रमाण है । चौथे वर्गमूलका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना सतार सहस्रार स्वर्गके देवोंका प्रमाण है । आनत प्राणत आरण अच्युत नव ग्रैवेयक नव अनुदिश विजय वैजयंत जयंत अपराजित इन छव्वीस कल्पोंमेंसे प्रत्येक कल्पमें देवोंका प्रमाण पल्यके असख्यात में भाग है ।
सर्वार्थसिद्धि के देवोंका तथा सामान्यदेवराशिका प्रमाण बताते हैं । तिगुणा सत्तगुणा वा सबट्ठा माणुसीपमाणादो । सामण्णदेवरासी जोइसियादो विसेसहिया ॥ १६२ ॥ त्रिगुणा सप्तगुणा वा सर्वार्था मानुषीप्रमाणतः ।
सामान्यदेवराशिः ज्योतिष्कतो विशेषाधिकः ॥ १६२ ॥
अर्थ — मनुष्य स्त्रियोंका जितना प्रमाण है उससे तिगुना अथवा सतगुना सर्वार्थसिद्धि के देवोंका प्रमाण है । ज्योतिष्क देवोंका जितना प्रमाण है उससे कुछ अधिक सम्पूर्ण देवरा - शिका प्रमाण है । भावार्थ -- मानुषियोंसे तिगुना और सतगुना इसतरह दो प्रकार से जो सर्वार्थसिद्धिके देवोंका प्रमाण बताया है वह दो आचार्यैके मतकी अपेक्षासे है । सम्पूर्ण देवोंमें ज्योतिषियोंका प्रमाण बहुत अधिक है, शेष तीन जातिके देवोंका प्रमाण बहुत अल्प है इसलिये ऐसा कहा है कि सामान्यदेवराशि ज्योतिषियोंसे कुछ अधिक है । ॥ इति गतिमार्गणाधिकारः ॥
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क्रमप्राप्त इन्द्रियमार्गणा में इन्द्रियोंका विषय स्वरूप भेद आदिका वर्णन करनेसे प्रथम उसका निरुक्तिपूर्वक अर्थ बताते हैं ।
अहमिंदा जह देवा अविसेसं अहमहंति मणंता । ईसंति एकमेकं इंदा इव इंदिये जाण ॥ १६३ ॥ अहमिन्द्रा यथा देवा अविशेषमहमहमिति मन्यमानाः । ईशते एकैकमिन्द्रा इव इन्द्रियाणि जानीहि ॥ १६३ ॥
अर्थ - जिस प्रकार अहमिन्द्र देवोंमें दूसरेकी अपेक्षा न रखकर प्रत्येक अपने २ को खामी मानते हैं, उसी प्रकार इन्द्रियां भी हैं । भावार्थ – इन्द्र के समान जो हो उसको इन्द्रिय कहते हैं । इसलिये जिस प्रकार नव मैवेयकादिवासी देव अपने २ विषयों में
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