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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । भावार्थ-संज्ञानाम वांछाका है, जिसके निमित्तसे दोनोंही भवोंमें दारुण दुःखकी प्राप्ति होती है उस वांछाको संज्ञा कहते हैं । उसके चार भेद हैं, आहारसंज्ञा भयसंज्ञा मैथुनसंज्ञा परिग्रहसंज्ञा । आहारसंज्ञाका खरूप बताते हैं ।
आहारदसणेण य तस्सुबजोगेण ओमकोठाए । सादिदरुदीरणाए हवदि हु आहारसण्णा हु॥ १३४ ॥
आहारदर्शनेन च तस्योपयोगेन अवमकोष्ठया ।
सातेतरोदीरणया भवति हि आहारसंज्ञा हि ॥ १३४ ॥ अर्थ-आहारके देखनेसे अथवा उसके उपयोगसे और पेटके खाली होनेसे तथा असातावेदनीयके उदय और उदीर्णा होनेपर जीवके नियमसे आहारसंज्ञा उत्पन्न होती है। भावार्थ-किसी उत्तम रसयुक्त आहारके देखनेसे अथवा पूर्वानुभूत भोजनका स्मरण करनेसे यद्वा पेटके खाली होजानेसे और असाता वेदनीयके उदय और उदीर्णासे इत्यादि और भी अनेक कारणोंसे आहारसंज्ञा अर्थात् आहारकी वाञ्छा उत्पन्न होती है । भयसंज्ञाके कारण और उसका स्वरूप बताते हैं।
अइभीमदंसणेण य तस्सुवजोगेण ओमसत्तीए । भयकम्मुदीरणाए भयसण्णा जायदे चदुहि ॥ १३५ ॥
अतिभीमदर्शनेन च तस्योपयोगेन अवमसत्त्वेन ।
भयकर्मोदीरणया भयसंज्ञा जायते चतुर्भिः ॥ १३५ ॥ अर्थ-अत्यन्त भयंकर पदार्थक देखनेसे, अथवा पहले देखे हुए भयंकर पदार्थके स्मरणादिसे, यद्वा शक्तिके हीन होनेपर, और अंतरंगमें भयकर्मकी उदय उदीर्णा होनेपर इत्यादि कारणोंसे भयसंज्ञा होती है । मैथुनसंज्ञाको बताते हैं।
पणिदरसभोयणेण य तस्सुवजोगे कुसीलसेवाए। वेदस्सुदीरणाए मेहुणसण्णा हवदि एवं ॥ १३६ ॥ प्रणीतरसभोजनेन च तस्योपयोगे कुशीलसेवया ।
वेदस्योदीरणया मैथुनसंज्ञा भवति एवम् ॥ १३६॥ अर्थ-खादिष्ट और गरिष्ठ रसयुक्त भोजन करनेसे, और पहले मुक्त विषयोंका स्मरण आदि करनेसे, तथा कुशीलका सेवन करनेसे और वेद कर्मका उदय उदीर्णा आदिसे मैथुनसंज्ञा होती है। परिग्रह संज्ञाका वर्णन करते हैं ।
उवयरणदंसणेण य तस्सुवजोगेण मुच्छिदाए य। लोहस्सुदीरणाए परिग्गहे जायदे सण्णा ॥ १३७ ॥
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