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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । हो उनको प्राण कहते हैं । ये प्राण पूर्वोक्त पर्याप्तियोंके कार्यरूप हैं-अर्थात् प्राण और पर्याप्तिमें कार्य और कारणका अन्तर है । क्योंकि गृहीत पुद्गलस्कन्ध विशेषोंको इन्द्रिय वचन आदिरूप परिणमावनेकी शक्तिकी पूर्णताको पर्याप्ति, और वचन व्यापार आदिकी कारणभूत शक्तिको, तथा वचन आदिको प्राण कहते हैं । प्राणके भेदोंको गिनाते हैं।
पंचवि इंदियपाणा मणवचिकायेसु तिषिण बलपाणा। आणापाणप्पाणा आउगपाणेण होति दस पाणा ॥ १२९ ॥ पञ्चापि इन्द्रियप्राणाः मनोवचःकायेषु त्रयो बलप्राणाः ।
आनापानप्राणा आयुष्कप्राणेन भवन्ति दश प्राणाः ॥ १२९ ॥ अर्थ-पांच इन्द्रियप्राण-स्पर्शन रसन घ्राण चक्षुः श्रोत्र । तीन बलप्राण-मनोबल वचनबल कायबल । श्वासोच्छ्रास तथा आयु इस प्रकार ये दश प्राण हैं । द्रव्य और भाव दोनोंही प्रकारके प्राणों की उत्पत्तिकी सामग्री बताते हैं। .
वीरियजुदमदिखउवसमुत्था णोइंदियें दियेसु बला। देहुदये कायाणा वचीबला आउ आउदये ॥ १३० ॥ वीर्ययुतमतिक्षयोपशमोत्था नोइन्द्रियेन्द्रियेषु बलाः ।
देहोदये कायानौ वचोबल आयुः आयुरुदये ॥ १३० ॥ अर्थ-मनोबल प्राण और इन्द्रिय प्राण वीर्यान्तराय कर्म और मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम रूप अन्तरङ्ग कारणसे उत्पन्न होते हैं । शरीरनामकर्मके उदयसे कायबलप्राण होता है। श्वासोच्छ्रास और शरीरनामकर्मके उदयसे प्राण-श्वासोच्छास उत्पन्न होते हैं । खरनामकर्मके साथ शरीर नामकर्मका उदय होनेपर वचनबल प्राण होता है । आयुःकर्मके उदयसे आयुःप्राण होता है। भावार्थ-वीर्यान्तराय और अपने २ मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाले मनोबल और इन्द्रियप्राण, निज और पर पदार्थको ग्रहण करनेमें समर्थ लब्धिनामक भावेन्द्रिय रूप होते हैं । इस ही प्रकार अपने २ पूर्वोक्त कारणसे उत्पन्न होनेवाले कायबलादिक प्राणोंमें शरीरकी चेष्टा उत्पन्न करनेकी सामर्थ्यरूप कायबलप्राण, श्वासोच्छ्वासकी प्रवृत्तिमें कारणभूत शक्तिरूप श्वासोच्छ्रास प्राण, वचनव्यापारको कारणभूत शक्तिरूप वचोबल प्राण, नरकादि भव धारण करनेकी शक्तिरूप आयुःप्राण होता है । प्राणोंके खामियोंको बताते हैं।
इंदियकायाऊणि य पुण्णापुण्णेसु पुण्णगे आणा। बीइंदियादिपुण्णे वचीमणो सण्णिपुण्णेव ॥ १३१ ॥
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