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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । जीवोंके दो भेद हैं एक सोपक्रमायुष्क दूसरा अनुपक्रमायुष्क । जिनका विषभक्षणादि निमित्तके द्वारा मरण संभव हो उनको सोपक्रक्रमायुष्क कहते हैं । और इससे जो रहित हैं उनको अनुपक्रमायुष्क कहते हैं। जो सोपक्रमायुष्क हैं उनके तो उक्त रीतिसे ही परभवसम्बन्धी आयुका बन्ध होता है। किन्तु अनुपक्रमायुष्कोंमें कुछ भेद है, वह यह है कि अनुपक्रमायुष्कोंमें जो देव और नारकी हैं वे अपनी आयुके अन्तिम छह महीना शेष रहने पर आयुके बन्ध करनेके योग्य होते हैं । इसमें भी छह महीनाके आठ अपकर्षकालमें ही आयुका बंध करते हैं-दूसरे कालमें नहीं । जो भोगभूमिया मनुष्य या तिर्यंच हैं वे अपनी आयुके नौ महीना शेष रहने पर नौ महीनाके आठ अपकर्षों से किसी भी अपकर्षमें आयुका बन्ध करते हैं । इस प्रकार ये लेश्याओंके आठ अंश आयुबन्धको कारण हैं । जिस अपकर्षमें जैसा जो अंश हो उसके अनुसार आयुका बन्ध होता है । शेष अठारह अंशोंका कार्य बताते हैं।
सेसद्वारस अंसा चउगइगमणस्स कारणा होति । सुक्कुक्कस्संसमुदा सवढं जांति खलु जीवा ॥ ५१८ ॥
शेषाष्टादशांशाश्चतुर्गतिगमनस्य कारणानि भवन्ति ।
शुक्लोत्कृष्टांशमृता सर्वार्थ यान्ति खलु जीवाः ॥ ५१८ ॥ अर्थ-अपकर्षकालमें होनेवाले लेश्याओंके आठ मध्यमांशोंको छोड़कर बाकीके अठारह अंश चारो गतियोंके गमनको कारण होते हैं । तथा शुक्ललेश्याके उत्कृष्ट अंशसे संयुक्त जीव मरकर नियमसे सर्वार्थसिद्धिको जाते हैं ।
अवरंसमुदा होंति सदारदुगे मज्झिमंसगेण मुदा । आणदकप्पादुवरि सबटाइल्लगे होंति ॥ ५१९ ॥ अवरांशमृता भवन्ति शतारद्विके मध्यमांशकेन मृताः ।
आनतकल्पादुपरि सर्वार्थादिमे भवन्ति ॥ ५१९ ॥ अर्थ-शुक्ललेश्याके जघन्य अंशोंसे संयुक्त जीव मरकर शतार सहस्रार वर्गपर्यन्त जाते हैं । और मध्यमांशोंकरके सहित मरा हुआ जीव सर्वार्थसिद्धिसे पूर्वपूर्वके तथा आनत स्वर्गसे ऊपरके समस्त विमानोंमेंसे यथा सम्भव विमानमें उत्पन्न होता है । और आनत खर्गमें भी उत्पन्न होता है।
पम्मुक्कस्संसमुदा जीवा उवजांति खलु सहस्सारं । अवरसमुदा जीवा सणकुमारं च माहिंद ॥ ५२०॥ पद्मोत्कृष्टांशमृता जीवा उपयांति खलु सहस्रारम् । अवरांशमृता जीवाः सनत्कुमारं च माहेन्द्रम् ॥ ५२० ॥
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