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गोम्मटसारः। सौधर्म ईशान कल्पवासी देवोंका क्षेत्र डेढ़राजू , सनत्कुमार माहेन्द्रवालोंका चार राजू, ब्रह्म ब्रह्मोत्तरवालोंका साढ़े पांच राजू, लांतव कापिष्ठवालोंका छह राजू , शुक्र महाशुक्रवालोंका साढ़े सात राजू , सतार सहस्रारवालोंका आठ राजू, आनत प्राणतवालोंका साढ़े नवराजू, आरण अच्युतवालोंका दश राजू, प्रैवेयकवालोंका ग्यारह राजू , अनुदिश विमानवालोंका कुछ अधिक तेरह राजू , अनुत्तरविमानवालोंका कुछ कम चौदह राजू क्षेत्र है । इस क्षेत्रप्रमाणके अनुसार ही उनकी ( कल्पवासी देवों की ) अवधिके विषयभूत द्रव्यका प्रमाण उक्त क्रमानुसार निकलता है।
सोहम्मीसाणाणमसंखेजाओ हु वस्सकोडीओ। उवरिमकप्पचउक्के पल्लासंखेजभागो दु ॥ ४३४ ॥ तत्तो लांतवकप्पप्पहुदी सवत्थसिद्धिपेरंतं । किंचूणपल्लमत्तं कालपमाणं जहाजोग्गम् ॥ ४३५ ॥
सौधर्मैशानानामसंख्येया हि वर्षकोट्यः। उपरिमकल्पचतुष्के पल्यासंख्यातभागस्तु ॥ ४३४ ॥ ततो लान्तवकल्पप्रभृति सर्वार्थसिद्धिपर्यन्तम् ।
किञ्चिदूनपल्यमानं कालप्रमाणं यथायोग्यम् ॥ ४३५ ॥ अर्थ-सौधर्म और ईशान खर्गके देवोंकी अवधिका काल असंख्यात कोटि वर्ष है। इसके ऊपर सनत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्म ब्रह्मोत्तर कल्पवाले देवोंकी अवधिका काल यथायोग्य पल्यका असंख्यातमा भाग है । इसके ऊपर लान्तव वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त बाले देवोंकी अवधिका काल कुछ कम पल्यप्रमाण है ।
जोइसियंताणोहीखेत्ता उत्ता ण होति घणपदरा । कप्पसुराणं च पुणो विसरित्थं आयदं होदि ॥ ४३६ ॥ ज्योतिष्कान्तानामवधिक्षेत्राणि उक्तानि न भवन्ति धनप्रतराणि ।
कल्पसुराणां च पुनः विसदृशमायतं भवति ॥ ४३६॥ अर्थ-भवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी इनकी अवधिका क्षेत्र बराबर घनरूप नहीं है। कल्पवासी देवोंकी अवधिका क्षेत्र आयतचतुरस्र (चौकोर; किन्तु लम्बईमें अधिक और चौड़ाई में थोड़ा) है। शेष मनुष्य तिर्यंच नारकी इनकी अवधिका विषयभूत क्षेत्र बराबर घनरूप है।
॥ इति अवधिज्ञानप्ररूपणा ॥
मनःपर्यय ज्ञानका खरूप बताते हैं।
चिंतियमचिंतियं वा अद्धंचिंतियमणेयभेयगयं । मणपजवं ति उच्चइ जं जाणइ तं खु गरलोए ॥ ४३७ ॥
गो.२१
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