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गोम्मटसारः।
१३१ भावार्थ-एक २ वस्तु अधिकारमें वीस २ प्राभृत होते हैं और एक २ प्राभृतमें चौवीस २ प्राभृतप्राभूत होते हैं। पूर्व ज्ञान के भेदोंकी संख्या बताते हैं ।
दस चोदसट्ठ अट्ठारसयं वारं च वार सोलं च । वीसं तीसं पण्णारसं च दस चदुसु वत्थूणं ॥ ३४३॥
दश चतुर्दशाष्ट अष्टादशकं द्वादश च द्वादश षोडश च ।
विंशतिः त्रिंशत् पञ्चदश च दश चतुषु वस्तूनाम् ॥ ३४३ ।। अर्थ-पूर्व ज्ञानके चौदह भेद हैं जिनमेंसे प्रत्येकमें क्रमसे दश, चौदह, आठ,अठारह, मारह, बारह, सोलह, वीस, तीस, पंद्रह, दश, दश, दश, दश वस्तु नामक अधिकार हैं। चौदह पूर्वके नाम गिनाते हैं।
उप्पायपुवगाणियविरियपवादत्थिणत्थियपवादे । णाणासच्चपवादे आदाकम्मप्पवादे य ॥ ३४४॥ पञ्चाक्खाणे विजाणुवादकल्लाणपाणवादे य । किरियाविसालपुवे कमसोथ तिलोयविंदुसारे य ॥३४५॥
उत्पादपूर्वाग्रायणीयवीर्यप्रवादास्तिनास्तिकप्रवादानि । ज्ञानसत्यप्रवादे आत्मकर्मप्रवादे च ॥ ३४४ ।। प्रत्याख्यानं वीर्यानुवादकल्याणप्राणवादानि च ।
क्रियाविशालपूर्व क्रमशः अथ त्रिलोकविन्दुसारं च ॥ ३४५ ॥ अर्थ-उत्पादपूर्व, आग्रायणीयपूर्व, वीर्यप्रवाद, अस्तिनास्तिप्रवाद, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, वीर्यानुवाद, कल्याणवाद, प्राणवाद, क्रियाविशाल, त्रिलोकविन्दुसार, इस तरहसे ये क्रमसे पूर्वज्ञानके चौदह भेद हैं । भावार्थवस्तुज्ञानके ऊपर एक २ अक्षरकी वृद्धिके क्रमसे पदसंघातआदिकी वृद्धि होते २ जब क्रमसे दश वस्तुकी वृद्धि होजाय तब पहला उत्पादपूर्व होता है । इसके आगे क्रमसे अक्षर पद संघात आदिककी वृद्धि होते २ जब चौदह वस्तुकी वृद्धि होजाय तब दूसरा आग्रायणीय पूर्व होता है । इसके आगे भी क्रमसे अक्षर पद संघात आदिकी वृद्धि होते २ जब क्रमसे आठ वस्तुकी वृद्धि होजाय तब तीसरा वीर्यप्रवाद होता है । इसके आगे क्रमसे अक्षरादिककी वृद्धि होते २ जब अठारह वस्तुकी वृद्धि होजाय तब चौथा अस्तिनास्तिप्रवाद होता है । इस ही तरह आगेके पांचमे आदिक पूर्व भी क्रमसे बारह, बारह, सोलह, वीस, तीस, पन्द्रह, दश, दश, दश, दश, वस्तुकी वृद्धिके होनेसे होते हैं। अर्थात् अस्तिनास्तिप्रवादके ऊपर क्रमसे बारह वस्तुकी वृद्धि होनेसे पांचमा ज्ञानप्रवाद,
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