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गोम्मटसारः।
१२९ त ज्ञानके पूर्व जितने ज्ञानके भेद हैं वे सब पदसमासके भेद हैं। यह संघात नामक श्रुतज्ञान चार गतिमेंसे एक गतिके खरूपका निरूपण करनेवाले अपुनरुक्त मध्यम पदोंका समूहरूप है। प्रतिपत्तिक श्रुतज्ञानका खरूप बताते हैं ।
एकदरगदिणिरूवयसंघादसुदादु उवरि पुवं वा । वण्णे संखेजे संघादे उड्डम्हि पडिवत्ती ॥ ३३७ ॥
एकतरगतिनिरूपकसंघातश्रुतादुपरि पूर्व वा ।
वर्णे संख्ये ये संघाते वृद्ध प्रतिपत्तिः ॥ ३३७ ॥ अर्थ-चार गतिमेंसे एक गतिका निरूपण करनेवाले संघात श्रुतज्ञानके ऊपर पूर्वकी तरह क्रमसे एक २ अक्षरकी वृद्धि होते २ जब संख्यात हजार संघातकी वृद्धि होजाय तब एक प्रतिपत्ति नामक श्रुतज्ञान होता है । संघात और प्रतिप्रत्ति श्रुतज्ञानके मध्यमें जितने ज्ञान के विकल्प हैं उतने ही संघातसमासके भेद हैं । यह ज्ञान नरकादिक चार गतियोंका विस्तृत खरूप जाननेवाला है। अनुयोग श्रुतज्ञानका खरूप बताते हैं ।
चउगइसरूवरूवयपडिवत्तीदो दु उवरि पुवं वा। वण्णे संखेजे पडिवत्तीउड्डम्हि अणियोगं ॥ ३३८ ॥
चतुर्गतिस्वरूपरूपकप्रतिपत्तितस्तु उपरि पूर्व वा।
वर्णे संख्याते प्रतिपत्तिवृद्ध अनुयोगम् ॥ ३३८ ॥ अर्थ-चारों गतियोंके स्वरूपका निरूपण करनेवाले प्रतिपत्ति ज्ञानके ऊपर क्रमसे पूर्वकी तरह एक २, अक्षरकी वृद्धि होते २ जब संख्यात हजार प्रतिपत्तिकी वृद्धि होजाय तब एक अनुयोग श्रुतज्ञान होता है । इसके पहले और प्रतिपत्ति ज्ञानके ऊपर सम्पूर्ण प्रतिपत्तिसमास ज्ञानके भेद हैं । अन्तिम प्रतिपत्तिसमास ज्ञानके भेदमें एक अक्षरकी वृद्धि होनेसे अनुयोग श्रुतज्ञान होता है । इस ज्ञानके द्वारा चौदह मार्गणाओं का विस्तृत खरूप जाना जाता है । . प्राभृतप्राभृतकका खरूप दो गाथाओं द्वारा बताते है ।
चोइसमग्गणसंजुदअणियोगादुवरि वडिदे वण्णे । चउरादीअणियोगे दुगवारं पाहुडं होदि ॥ ३३९ ॥ चतुर्दशमार्गणासंयुतानुयोगादुपरि वर्धिते वर्णे ।
चतुराद्यनुयोगे द्विकवारं प्राभृतं भवति ॥ ३३९ ॥ गो. १७
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