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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०१ गोम्मटसारः। औरालिकवरसंचयं देवोत्तरकुरूपजातजीवस्य । तिर्यग्मनुष्यस्य भवेत् चरमद्विचरमे त्रिपल्यस्थितिकस्य ॥ २५५॥ अर्थ-तीन पल्यकी स्थितिवाले देवकुरु तथा उत्तरकुरुमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यञ्च और मनुष्योंके चरम तथा द्विचरम समयमें औदारिक शरीरका उत्कृष्ट संचय होता है । वैक्रियिक शरीरके उत्कृष्ट संचयका स्थान बताते हैं । वेगुचियवरसंचं बावीससमुद्दआरणदुगम्हि । जमा वरजोगस्स य वारा अण्णत्थ णहि बहुगा ॥ २५६ ॥ वैगूर्विकवरसंचयं द्वाविंशतिसमुद्रमारणद्विके। ___यस्मात् वरयोगस्य च वारा अन्यत्र नहि बहुकाः ॥ २५६ ॥ अर्थ-वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट संचय, वाईस सागरकी आयुवाले आरण और अच्युत वर्गके ऊपरके विमानों में रहनेवाले देवोंके ही होता है । क्योंकि वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट योग तथा उसके योग्य दूसरी सामग्रियां अन्यत्र अनेकवार नहीं होती। भावार्थ-आरण अच्युत वर्गके उपरितन विमानोंमें रहनेवाले देवोंके ही जिनकी आयु बाईस सागरकी है वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट योग तथा दूसरी सामग्री अनेक वार होती हैं, इसलिये इन देवोंके ही वैक्रियिक शरीरका उत्कृष्ट संचय होता है। तैजस तथा कार्मणके उत्कृष्ट संचयका स्थान बताते हैं । तेजासरीरजे] सत्तमचरिमम्हि विदियवारस्स । कम्मस्स वि तत्थेव य णिरये बहुवारभमिदस्स ॥ २५७ ॥ तैजसशरीरज्येष्ठं सप्तमचरमे द्वितीयवारस्य । ____ कार्मणस्यापि तत्रैव च निरये बहुवारभ्रमितस्य ॥ २५७ ॥ अर्थ-तैजस शरीरका उत्कृष्ट संचय सप्तम पृथिवीमें दूसरीवार उत्पन्न होनेवाले जीवके होता है । और कार्मण शरीरका उत्कृष्ट संचय अनेक वार नरकोंमें भ्रमण करके सप्तम पृथिवीमें उत्पन्न होनेवाले जीवके होता है। आहारक शरीरका उत्कृष्ट संचय आहारक शरीरका उत्थापन करनेवाले प्रमत्तविरतके ही होता है । योगमार्गणामें जीवोंकी संख्याको वताते हैं । बादरपुण्णा तेऊ सगरासीए असंखभागमिदा। । विकिरियसत्तिजुत्ता पल्लासंखेजया बाऊ ॥ २५८ ॥ बादरपूर्णाः तैजसाः स्वकराशेरसंख्यभागमिताः। विक्रियाशक्तियुक्ताः पल्यासंख्याता वायवः ॥ २५८ ॥ अर्थ-बादर पर्याप्तक तैजसकायिक जीवोंका जितना प्रमाण है उसमें असंख्यात For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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