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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विषयसूची। पृ. पं. पृ. पं. विषय. १।१ छठ गुणस्थानका लक्षण ... १। ५ प्रमादक १५ भेद ... २।१ प्रमादके विषयमें ५ प्रकार... सख्या १४।२२ १५। ७ १५।१५ १५।२५ १६।११ १६।२५ १७।१० १७१२४ १८।६ १८।२३ विषय. मंगलका प्रयोजन ... ... मंगल और प्रतिज्ञा ... ... बीस अधिकारोंके नाम ... ... गुणस्थान और मार्गणाकी उत्पत्तिका निमित्त और उनके पर्याय वाचक शब्द गुणस्थान संज्ञाको मोहयोगभवा क्यों कहा? इसका उत्तर दो प्ररूपणा और बीस प्ररूपणाकी भिन्न २ अपेक्षा ... ... ... मार्गणाप्ररूपणामें दूसरी प्ररूपणाओंका _अंतर्भाव ... ... ... संज्ञाओंका अंतर्भाव उपयोगका अंतर्भाव गुणस्थानका लक्षण चौदह गुणस्थानोंके नाम ... ... चार गुणस्थानोंमें होनेवाले पांच भाव ४ गुणस्थानोंके पांच भावोंकी अपेक्षा... पांचमे आदि गुणस्थानों में होनेवाले भाव और उनकी अपेक्षा मिथ्यात्वका लक्षण और भेद मिथ्यात्वके पांच भेदोंका दृष्टांत प्रकारांतरसे मिथ्यालका लक्षण मिथ्यादृष्टिके बाह्य चिन्ह ... सासादन गुणस्थानका लक्षण सासादनका दृष्टांत ... तीसरे मिश्र गुणस्थानका लक्षण तीसरे गुणस्थानका दृष्टान्त तीसरे गुणस्थानकी कुछ विशेषता वेदक सम्यक्त्वका लक्षण ... ... औपशमिक और क्षायिक सम्यक्त्वका लक्षण चतुर्थ गुणस्थानकी कुछ विशेषता पांचमे गुणस्थानका लक्षण... ... विरताविरतकी उपपत्ति ... गो.प्र.२ २।१८ प्रस्तारका पहला क्रम ... प्रस्तारका दूसरा क्रम ... प्रस्तारकी अपेक्षा अक्षपरिवर्तन दूसरे प्रस्तारकी अपेक्षा अक्षसंचार ... ३। ५ नष्टकी विधि ... उद्दिष्टका स्वरूप... ३११४ प्रथम प्रस्तारकी अपेक्षा नष्ट उद्दिष्टका ४।१ । गूढयंत्र ... दूसरे प्रस्तारकी अपेक्षा गूढयंत्र ... और सतमेगुणस्थानका खरूप ... ... सातमे गुणस्थानके दो भेदोंका स्वरूप... अधःकरणका लक्षण ... अपूर्वकरण गुणस्थान अपूर्वकरण परिणामोंका कार्य नवमे गुणस्थानका स्वरूप ... ७२१ दशमे गुणस्थानका स्वरूप ... ग्यारहमे गुणस्थानका खरूप ૮૧૪ बारहमा गुणस्थान तेरहमा गुणस्थान ९। ५ चौदहमा गुणस्थान गुणस्थानों में होनेवाली गुणश्रेणिनिर्जरा... ९।२५ सिद्धोंका स्वरूप... १०।११ सिद्धोंको दियेहुए विशेषणोंका फल ... १०.३० ११।८ जीवसमास-अधिकार २ १२। १जीवसमासका लक्षण ... ... जीवसमासके चौदह भेद ... ... १२।२२ जीवसमासके ५७ भेद ... ... १३। १/जीवसमासके विषयमें स्थानादि ४ अधि१४। १ कार १४। ९स्थानाधिकार , १९1१० १९।२२ २०१३ २०।११ २१। १ २३४१५ २५। ३ २५।२३ २७॥ ८ २७१२८ २८ ६ २८।१४ २९॥ ४ २९।१६ ३०११२ ३०।२३ ८।२३ ९।१४ ३१।१७ ३२।११ ३२११९ ३२।२९ ३३।१० For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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