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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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होता है । त्याग, वैराग्य तथा विवेक शुद्ध होनेसे वही मुक्तिका अग है। संसारके क्लेशरूपी रोगोंके भारको मिटानेमे औषध रूप सम्यग्दर्शन ही है। जोकि ज्ञान और चरित्रका बीज रूप है। इसीसे महाव्रतोंको पालन करते २ परम आत्मामें स्थिर रहनेकी भावना जागृत होती है। ज्ञानात्माओंका विश्वमें सर्वोपरि भूषण रूप है। इस श्रेष्ठ सम्यग्दर्शनसे नि सशय मोक्ष पाता है जिसके निशंकसे लगाकर प्रभावना तक आठ अग हैं। चरित्र
उत्तराध्ययन सूत्रके २८ वें अध्यायमें वीरप्रभुने स्वयं प्रतिपादन किया है कि मिथ्यात्व, अव्रत, कपाय, प्रमाद और मन वचन कायके अशुद्ध विचारोंसे जो पाप कर्म वाधे गए हैं, जिनका कि शुभाशुभ फल परिवर्तन करना अपने अधिकारमें अब न रह गया है उन काँको जिस पुरुषार्थ-बलसे नष्टकरके आत्माको कषायात्मा, योगात्मासे रिक्त करदेना चरित्र कहलाता है, चरित्रसे भविष्यके लिए प्रवृति मार्गका अवरोध करके तपसे उसे अमिमे सुवर्णकी भाति मल शोधन करता है । जिससे जन्मान्तरके कर्मोका क्षय होनेसे सर्व दु खोंसे रहित हो जाता है।
और यह चरित्र अणुव्रत और महाव्रतके भेदसे दो प्रकारका है। जिससे अपने भावोंको कषाय रहित करनेपर मूलगुण और उत्तरगुणरूप चरित्र एक देश या सर्वथा सयम गुण प्राप्त करता है।
अत भगवान् ज्ञातनन्दन महावीरका चरित्र कैसा था ? झातपुत्र
वे ज्ञात-वंशके क्षत्रियोंके कुलमें उत्पन्न होनेसे ज्ञातपुत्र कहलाते थे। मुनि वनकर ज्ञातपुत्र कभी किसी वस्तु की वियोग दशामें शोक प्रगट न करते । ज्ञातपुत्र किसीके शरण नहीं जाते, तथा सदैव खावलम्बी रहते थे। उनकी भावना राग और द्वेषसे रहित-मध्यस्थ थी । वे अनुकूल, प्रतिकूल प्रसंगों पर लक्ष्य न देकर सयम मार्गमें स्थिर बुद्धिसे अपनी धर्मप्रतिज्ञाओंमें सदा प्रवृत्त एवं दृढ रहते थे।
अत गुरो ? मैंने उनके ज्ञान, दर्शन और चरित्रके विषयमें जो कुछ पूछा है। उसका आपने यथानुरूप अनुभव कर लिया है, अत. जो कुछ सुना देखा है, वह शान्त चित्त होकर मुझसे कहिएगा?