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वीरस्तुतिः।
आचार्यना छत्रीशगुण
पांच इन्द्रियोने वश करे छे, नव वाड विशुद्ध ब्रह्मचर्य, पालन करे छ। क्रोध-मान-माया-लोभ दूर करे छ । पांच महाव्रतोनुं पालन करे छ, पांच आचर रोनुं समाचरण करे छ, पाच समिति-त्रणगुप्ति ए आठ दया माताना प्रवचनने धारण करे छ । ए छत्रीस गुणवाला आचार्य कही शकाय, वीजा नहीं । आचार्यने चतुर गोपालनी उपमा
चतुर गोपाल वधा पशुओ पर पोतानी दृष्टि राखे छे, तेमने कोईना खेतरमा दाखल थवा देतो नथी, तेवीज रीते आचार्यदेव पण पोताना संघने अगान्तिकुसम्प-कषाय-रूढिवाद-विषमता-तरफ जवा देता नथी, क्लेश थता वेंतज आचार्य तरत तेने गमावी दे छे, भव्यात्माओना जन्म जन्मान्तरोना क्लेशने मटाडी दे छ, तेमने सन्मार्ग-सम्यग्दर्शननो सरल रस्तो बतावे छ । योग्य-अयोग्य, संसारमोक्ष, हित-अहित, धर्म-अधर्म-विगेरेनी समजण आपे छ । एवा आचार्यप्रभु वादवा योग्य छ। आचार्यने नमस्कार करवानुं प्रयोजन
आचार सम्बन्धी उपदेश तेओनी पासेथी मळे छे, वेथी तेमने त्रीजा पदमां नमन करेलो छे, कारणके चरित्रोपदेशनो आपणा पर तेओ प्रभाव पाडे छे, आपणे तेमने उपकारनी दृष्टिथी निरभिमानी वनीने नमस्कार करिए छीए। द्वादशागी[शान-] वाणीना तेओ पूर्णपाठी छे, तेमज वीजाओने भणाववानु कार्य पण तेमने हाथ छे। आचार्यनी विशेषता
ज्ञान-दर्शन-चरित्र-तप रूप गुप्त मंत्रनी उत्तम शैली थी तेओ व्याख्या करेछे, तेओ मोक्ष शास्त्रना उपदेशक छे, शिष्योने सदाचारमा स्थिर करे छे, शिक्षाना पूर्ण स्वामी छे, आत्म-योग-सिद्धिनो मार्ग तेमनी पासेथी प्राप्त थाय छ, श्रीमान् मुधर्माचार्य आचार्यना वधा गुणोथी विराजमान हता। अन्तेवासी जंवूनो सुधर्माचार्यने प्रश्न
अगाध गुण समुद्ररूप सुधर्माचार्यने जिज्ञासु जंवूए अन्तिम तीर्थकर भगवान् ज्ञातृपुत्र महावीर खामीना गुणोनो परिचय प्राप्त करवाने माटे प्रश्न कों के "तेओ केवा हता? ए धर्मवर- चक्रवाए पोताना वर्मचक्रथी संसारमा रसदा.
मा स्थिर करे छे, शिक्षा
सुधर्माचार्य
काम-योग-सिद्धिनो मार्ग