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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता 'खयमाचरते शिष्यानाचारे स्थापयत्यपि । आचिनोति हि शास्त्रार्थमाचार्यस्तेन कथ्यते' । इति कुलार्णवः । “आनायतत्वविज्ञानाचराचरसमानतः। यमादियोगसिद्धत्वादाचार्य इति कथ्यते" ॥१॥ इति शांकरे ॥ अतोऽत्र जिनधर्म एव मन्त्रस्तस्य व्याख्याकृत् , श्रीमान् सुधर्माचार्य इति भावः । तं सुधर्माचार्य प्रति श्रीमन्महावीरचरमतीर्थकुगुणान् पृष्टवान्, विनयेनेति शेषः "सन्मतिर्महतिवीरो, महावीरोनियम, नियोग, भाषा समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त, पान, उद्गमादि (उद्गम, उत्पाद, एषणा) दोषोंकी , विशुद्धि, शुद्धाशुद्धग्रहण, व्रत, नियम, 'तप और उपधान। प्रथम सूत्र आचारांग में दो श्रुतस्कन्ध, ८५ उद्देशनकाल, ८५ समुदेशनकाल, तथा १८००० पद संख्या है। सूत्रकृतः-सूअगडे गं ससमया सूइजंति, परसमया सूइब्नन्ति, सपरसमया सूइज्जति, जीवा सूइज्जति' अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइजति, लोगे सूइज्जति, अलोगे सूइजति, लोगालोगे सूइजति, सूअगडेणं जीवाजीवे पुण्णपावा सवसंवरनिवरणावंधमुक्खावसाणा पयत्था सूइज्जति । xxx xx असो'इस्स किरियावाइयसयस्स, चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइअवाईणं, तेतीसं उद्देसणकाला, तेतीसं समुसणकाला, छत्तीसं पदसहस्साई। सूत्रकृतः-सूअगडांग (सूत्रकृतांग ) में प्ररूपित विषय इस प्रकार हैं। खसिद्धान्त, परसिद्धान्त, ख-परसिद्धान्त, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष तकके सब पदार्थ, इतर दर्शन मोहित नवीन संदिग्ध दीक्षितकी बुद्धिको शुद्ध करनेके लिए १८० क्रियावादी के मत ८४ अक्रिया वादीके मत, ३२ विनयवादीके मत, अज्ञानवादीके .६७ मत, सब मिलकर ३६३ अन्यदृष्टिके मतोंका परिक्षेप करके खसमय स्थापन, . . सूत्रकृतांग सूत्रमें दो श्रुत-स्कंध हैं, २३ अध्याय हैं, ३३ उद्देशन काल है, ३३ समरेशन काल हैं। ३६... पद संख्या है।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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