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- वीरस्तुतिः। - -
असंख्य सुरासुरोंका आधिपत्य भोगनेके लिए इन्द्रपदको प्राप्त करते हैं, यह मैंने अर्हन् भगवान्से जैसा सुना है, वैसा तुझे कहकर सुनाया है*।
लता यहां इन सबके मया कोई २ अरहाभापाका शब्द है कि
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• * इस गाथामें 'भरहंत' यह प्राकृत भाषाका शब्द है जिसका संस्कृत अनुवाद 'अर्हत्' होता है, कोई २ 'अरहोन्तर' 'अरथान्त' पद भी बताते हैं। यहां इन सबके अर्थोपर यदि विचार किया जाय तो आशय वही निकलता है जो अर्थ 'अर्हत्' शब्दका होता है।
(१) 'अहं' धातुका मर्थ पूजा या योग्य अर्थ होता है, इस अर्धके अनुसार अतिशय वन्दनीय-सेवनीय-स्मरणीय होनेके कारण वे 'अर्हन्' (अरहंत) कहलाते हैं। क्योंकि इनके पाचों कल्याणकोंमें अनेक देवों और ६४ इन्द्रोंद्वारा अनेक विलक्षण सेवा सम्बन्धी घटनाएं होती है, और वे मनुष्योंकी अपेक्षा अतिशययुक्त महापुरुष होते है, और अतिशायक होनेके कारण उनका यह 'अरहंत' नाम सार्थक तथा यथार्थ है । जैसा कि 'धवल' अन्यमे भी कहाहै कि. अतिशयभावपूजार्हत्वादहन्तः, स्वर्गावतरणजन्माभिषेकपरिनिष्कमणकेवलज्ञानोत्पत्तिपरिनिर्वाणेषु देवकृतानां पूजानां देवासुरमानवप्राप्तपूजाभ्योऽधिकत्वादतिशयादहत्वाद्योम्यत्वादहन्तः ।।
(धवलसिद्धान्त) अरिहंति वंदणनमंसणाणि अरिहंति पूयसकारं, अरिहंति सिद्धिगमणं 'अरहंता' तेण उच्चति ।
(मूलाचार) भावार्थ-जो भाव पूजाके योग्य तथा अनुकरणीय महाआदर्शपुरुप हों उनको 'अर्हन्' कहते हैं। जिनके जीवनमे अनेक दिव्य घटनाएँ विलक्षण रूपसे परिघटित होती हैं, जैसेकि- वर्गसे अवतरण, जन्मोत्सव, परिनिष्क्रमण (दीक्षा ग्रहण), केवलज्ञानकी उत्पत्ति, मोक्षारोहण आदि घटनाओंके होते समय देव-असुर-मानव इत्यादिके द्वारा महान् उत्सवका मनाना, या मनुष्योंको उनका अनुकरण करते हुए उनके समान आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ होना, इत्यादि महानताके योग्य होनेसे वे 'अर्हन्' कहलाते हैं।