________________
संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २२१ श्रावकनी ११ प्रतिज्ञा (पडिमा) मां छठी रात्रि भोजन त्यागनी छ । जे अन्न-पान-खादिम-खादिमनी वस्तुओनो उपयोग रात्रे करतो नथी, ते सर्व जीवोनी अनुकम्पा करवावाळो साचो गृहस्थ छे. मुनिओर्नु छटुं व्रत-रात्रिभोजन त्याग छे,
मुनिओ तो रात्रिभोजननो सर्वथा त्याग करे छे, दशवैकालिकसूत्रमा रात्रिभोजनत्यागरूप छळु व्रत आ प्रमाणे कयुं छे, शिष्य गुरुनी समीपे प्रतिज्ञा करे छे-के हे भगवान् ! हु रात्रिभोजननो जीवन पर्यन्त सर्वथा त्याग करूं छु, हुं जीवन पर्यंत त्रण करण अने त्रण योगे करी अर्थात् मन-वचन अने काय द्वारा अन्न पाणी-खाद्य खाद्य (मेवा विगेरे खोराक अने मुखवासादि) एम चारे प्रकारना आहार राने करीश नहि, करावीश नहि, भने करनारने अनुमोदन पण आपीश नहि, पूर्वे जे रानि भोजन सम्बन्धी पाप कर्यु होय तेनाथी हुँ निवृत्त थाऊं छु, आत्म साक्षीए ते पापने निंदु छु, आपनी पासे ते पापने अवगणुं छु, मने हवेथी ते पापकारी कर्मथी मारा आत्माने सर्वथा अलग करुं छु, इत्यादि।
अहिंसा महाव्रतनी रक्षाने माटे रात्रिभोजननो त्याग करवामा आवे छे, भने ते पण यावज्जीव सुधी त्याग करेलो छ,
तेने महाव्रत न कहतां व्रत तरीकेज गणाव्युं छे, तेनुं कारण ए छे के महानतोनी पेठे तेनु पालन बहु कठिन नथी, ते खातर तेने मूल गुणमां न गणता उत्तर गुणमा गणाव्युं छे, ।
वळी महाव्रतोनी पाछळ तेने एटला माटे गणाव्यु के-प्रथम अने अन्तिम तीर्थकरना समयना मनुष्योनो खमाव ऋजु जड वक्र जड अनुक्रमे होय छे, तेनो पाठ सुगम रीते समजाववाने माटे महाव्रत साथे तेने जोडी देवामा आव्युं छे, तेथी ए सावित थाय छे के महाव्रतोनी पेठे आ व्रतर्नु पण पालन करवानु छ ।
दन्य-क्षेत्र-काल-भावनी तेमज मिश्रामिश्र द्रष्टिए तेना अनेक प्रकारो छे, जेमके द्रव्यथी असनादि, क्षेत्रथी अढी द्वीपमा, कालथी रानें भावथी द्वेष रहित यईने तेनुं पालन करवू आवश्यक छे.