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। वीरस्तुतिः।
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इसके अतिरिक्त अमितगति श्रावकाचारमें भी अनेक दोष दिखाए हैं,
जैसे-“रातमें राक्षस और पिशाच घूमते हैं, जीवोंके समूहको भलि प्रकार देखा नहीं जाता, जिस वस्तुका नियम किया हो उस पदार्थको भी अनजानपनसे खा सकता है, और उससमय घोर अन्धकार छाया रहता है।" "उस समय सुपात्र साधु महापुरुषोंका भी आना कठिन है, जिसमें गुरुदेवका सेवा सत्कार नहीं किया जा सकता, और सयमका निरन्तर विनाश हो जाता है, यहा तक कि छोटे मोटे जीव भी भक्षण कर जाता है ।" "जिसमे दानादिक शुभकर्म-भी वर्जित हैं, लोकोंका आना जाना उस समय विल्कुल बंद हो जाता है, जो एकान्त दोषोंका घर है, जिसमें दिनका अभाव होजाता है, ऐसी रात्रिमें धर्मध्यानकुशल मनुष्य भोजन कमी नहीं करते।" "जो दुराशयके कारण जीभके खादके फेरमें पड कर रात्रिमे भोजन कर लेते हैं वे भूत प्रेतोंकी संगतिको न ... छोड सकेंगे।" "जिसने यम-नियम-संयमकी क्रियाओंकात्याग कर दिया है,
और दिनरात खाने पीनेमें ही पिला पडता है, उसे बुद्धिमान विना सींग पूंछका पशु ही समझते हैं । मगर उसके पशुओ जैसे खुर ही तो नहीं हैं" "बुद्धिमान् शारीरिक सुख और जीवरक्षाके लिए दिनमे भोजन करते हैं, रात्रिम आरामसे सोते है, ज्ञानीजन समय विचार कर वोलते हैं, तथा आत्मशान्तिके लिए गुरु जनकी सत्सगति और सत् शास्त्रका श्रवण-मनन और निदिध्यासन करते हैं ।” “गुणवान् और उत्तम पुरुष सदैव दिनमे एक वार भोजन करते हैं, मध्यम-पुरुष उज्वल दिनमें दो वार आहार करते हैं, और जो दिनरात निरन्तर चरते ही रहते हैं वे मनुष्योंमें अधम हैं ।" "जो पुरुप दिनके आदि और अन्तकी दो घडियोको छोड कर भोजन करते हैं, उनको कमी स्वास्थ्य बिगडनेका भय नहीं रहता, वे इन्द्रियोंके घोडों को जीतकर संसार भरके कप्टसे एकदम हल्के हो जाते है ।" "जो पुरुष अपने पास दीपक रसकर रातको खाते हैं मानो वे स्वभावसे नीचेकी ओर वहनेवाली नदीके जलको वृक्षकी चोटीके ऊपर पहुचाया चाहते हैं" "जो रात्रि भोजनको सुखदायक जीवन मानता है वह आगसे जले हुए वनको मानो फलदायक मानता है, मगर यह अनहोनी वात है।" "जो दिन और रातके खानेमें वरावर पुण्य और पापकी मान्यता रखते है वे मानो सुख और दु.खके प्रदाता प्रकाश और अन्धकारको समान देखते हैं।" "जो धर्मबुद्धिसे रातमें खाते हैं, वे निश्चयसे वृक्षोंकी पद्धतिको वढानेके