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विषय श्रीसुधर्माचार्य वीरप्रभुके गुणोंको प्रकट करते हैं, उपयोगमय, अमूर्त, कर्ता,
सदेह परिमाण, ... भोक्ता, संसारस्थ, सिद्ध, ... ऊर्ध्वगामी, त्रस, ... स्थावर, द्रव्यप्राण, गुजराती
अनुवाद, ... ... पृथ्वीकाय, अपकाय, ... तेजस्काय, वायुकाय, वन
स्पतिकाय, ... ... पञ्चम गाथा- ... स. टीका, भापाटीका, ... गुजराती अनुवाद, छठवीं गाथा- ... स० टीका, भापाटीका, ... सातवीं गाथा-... आठवीं गाथा-... नववी गाथा- ... मेरुकी उपमा, ... ... दशी गाथा-... ... मेरु पर्वतका वर्णन, ... ग्यारहवीं गाथा- ... सुमेरु पर्वत तीनों लोकों
व्याप्त है, .... ...
पृष्ठ विपय
वारहवीं गाथा-... ... तेरहवीं गाथा- ... ...
चौदहवीं गाथा- ... | उपमेयका वर्णन, ... ... ५७ पन्द्रहवीं गाथा. ... ... ८८
निषध पर्वत और रुचकपर्वतकी ___ उपमा ... ... ... . सोलहवीं गाथा- ... लेझ्याओंका वर्णन, ... कृष्णलेश्या-नीललेश्या-कापोती___ लेश्या, ... ... ९३ तेजोलेश्या, पद्मलेश्या-शुक्ल
लेश्या, उनपर उदाहरण, सतरहवीं गाथा- ... | सिद्धिवर्णन ... ... १०१
अठारहवीं गाथा- ... १०१ | शाल्मली वृक्ष और नन्दन७० वनकी उपमाका वर्णन, १०२
उन्नीसवीं गाथा- ... १०३ ७५ / मेघगर्जना-चन्द्र और चन्द७६ / नकी उपमाका वर्णन, ... १०४ ७७ वीसी गाथा-... ... १०४
| महावीर प्रभुमें स्वयंभूरमण ७९ / समुद्र, धरणेंद्र, इक्षुरससे
__भी अधिक महत्ता, ... १०५ ८० इक्कीसवीं.गाथा- ... १०६
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