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१९८ . ... वीरस्तुतिः। -..', उन सवको प्रभु अच्छे प्रकारसे जानकर तथा औरोंको इसका तथ्य समझा कर : संयममें तत्पर होगये थे,अर्थात् जैसा उपदेश करते थे वैसा आचरणमें भी लाते थे ॥ २७ ॥ १ , . . .'
भाषाटीका:-क्रियावादियोंके १८० मत, अक्रियावादियोंके ८४ मत, विनयवादियोंके ३२ मत, और अज्ञानवादियोंके ६७ इस प्रकार पाषंडियोंके ३६३ मेद सर्वधर्मलिंगिओंके होते हैं । बाद्धोंने ९६ पाषंड माने हैं । मनोनीत धर्मका नाम पाषंण्ड है। या सर्वधर्मका नाम पाषंड है। प्रभुने उनकी तुलना स्याद्वादसे कर दिखाई । जिस अग्नि परीक्षामें कोई पाषंड न डट सका। परन्तु प्रभुने इनसे सर्वधर्म समभाव रखना बताया। उनमें युक्तायुक्तविभाग करके असत्य का त्यागना सर्वश्रेष्ठ माना । - इस प्रकार खुसमय, परसमय का मन्तव्य समझाकर यावज्जीवतक संयमधर्ममें एकरस होकर तत्पर (स्थिर) रहे थे ॥ २७ ॥ ..
गुजराती अनुवाद-क्रियावादीना १८० मत, अक्रियावादीना ८४, विनयवादीना ३२ अने अज्ञानवादीना ६७ ए सर्व ३६३ पाखण्डिओना मेद जाणवा, वोद्धोए ९ मेद मान्या छे, मनोनीत धर्म पाखण्ड कहेवाय छे, तेनी तुलना स्याद्वादथी करी वतावी, ते अग्निपरीक्षामा कोई पाखण्डी टकी न शक्यो। प्रभुए सर्व धर्म समभाव राखवानुं पण वताव्यु, तेमा योग्यायोग्यतुं जाणपणुं पण वतावीने असत्यनो त्याग सर्व श्रेष्ठ मान्यो। आरीते खसमय, पर-समयनुं मन्तव्य समजीने, उत्तम दशविध संयममा (धर्ममा) जावजीव सुधी सावधान पणे रह्या ॥ २७॥ ।
से वारिया इत्थी सराइभत्तं, ' उवहाणवं दुक्खखयठ्याए।
लोगं विदित्ता आरं परं च, - 'सवं प्पभू वारिय सबवारं ॥२८॥
.., । संस्कृतच्छाया 'स वारयित्वा स्त्रियं सरात्रिभक्त, उपधानवान् दुःखक्षयार्थम् । . लोकं विदित्वाऽऽरं पारं च, सर्व प्रभुारितवान् सर्ववारम् २८