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उत्तर
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संस्कृतटीका- हिन्दी-गुर्जर भाषान्तरसहिता
१९३
हे पूज्यनीय ! मानके विजयसे क्या लाभ होता है ? मानके विजयसेनिरभिमानिता या मार्दवताका अद्वितीयगुण पैदा होता है । मान-जन्य कर्मका प्रतिबंध न करके पहले के बांधे हुए कर्म्मकी निर्जरा करता है ॥ मार्दवतासे क्या लाभ होता है ? इससे अभिमान रहित होजाता है । वह किसी भी पदार्थ में उत्सुक नहीं होता । कठिन स्वभावको न रख कर वह फिर कोमल और मृदुताका सम्पादन करके जाति, कुल, बल, रूप, तप, ज्ञान, लाभ और ऐश्वर्य इन आठमदोंका सहार करता है जोकि आत्मशत्रु रूप हैं ।
मायाका विजय करने से जीव क्या पाता है ? इससे प्रकृति सरल हो जाती है। कपटसे भोगेजानेवाले कर्म नहीं बांधता । और पहले प्रतिबंधको तोडदेता है । निष्कपटतासे जीवको क्या प्राप्त होता है ? निष्कपटतासे काय, मन और भाषासे सरल होकर 'यथार्थ भाव पैदा करता है, किसीको ठगता नहीं, ऐसा जीव धर्मका सम्यक् आराधक वन जाता है ।
लोभको जीतनेसे क्या लाभ होता है ? इसे जीतनेसे संतोषरूपी अमृतको पाता है । और तज्जन्य कर्मका बंध नहीं डालता । और पहले बाधे हुए कर्म्मको बखेर देता है । निर्लोभतासे जीवको क्या लाभ होता है ? इससे अकिंचन भाव यानी निस्पृहताका गुण मिल जाता है । क्योंकि निष्कामजीवीको धनके लोभी कभी नहीं चिपटते ।
कषाय भी एक आग है इसे बुझाओ ! जैसे कहा भी है कि - चारों ओर आग सुलग रही है, वह सबको जला रही है, किसी भी शरीर धारी प्राणीको इसने नहीं छोडा, सव जीव इसमें निरन्तर जल रहे हैं ।
गौतम | आपने उसे किस प्रकार बुझाया ।
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केशिन् ! महामेघसे एक उत्तम जल पैदा हुआ है, उसी पानी को लेकर अपनी देहको निरन्तर सींचता रहता हूं जिससे वह आग मुझे नहीं जलासकता ।
• गौतम ! वह कौनसा अमिहै, ? गौतम बोले, केशिमुने । कषाय ही सबसे भयंकर अमिहै । उसे ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तपके जलसे सींचकर ठंडा कर दियाहै । वह जल जिनवाणीरूप मेघधारा से पाया है । उसीसे उसे बुझाया है । अतः वह आग अव मुझे नहीं जला सकती ॥ २६ ॥
वीर. १३