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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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बुद्धपिटकना 'महावग्ग' नामे सूत्रमा महात्मा बुद्ध, भगवान् महावीरनी जन्मभूमि "कुंड ग्राम" मा तेमज तेनी नजीक 'ज्ञातृओ' ना गामोमा अने वैशाली नगरीमा जवानो तेमज त्या 'निग्रन्थ' श्रावक सिंह सेनापतिनी साथे वातचीत करवानो उल्लेख'आवे छे, ते उल्लेख ना आधारे भगवान् महावीर प्रभुना 'ज्ञातृवंश' अने तेमनी जन्मभूमि सम्बन्धी आपणने घणु जाणवायूँ मळे छे, ते कारणथी ते उल्लेख आ नीचे उतारवामा आव्यो छे ।
__ ज्या कोटिग्राम [ देखो विनयपिटक महावग्ग पानु २४१ कोटिग्राम ] तुं त्या भगवान् गया, कोटिग्राममां भगवान बुद्ध विहार करता हता, अम्बापाली गणि: काए साभल्यु के भगवान् अहीं आवी गया छे, तेथी तेणे सुन्दर रथ जोडाव्यो, ने तेमा बेसीने सुन्दर रथोनी साथे वैशालीथी नीकळीने 'कोटिग्राम' तरफ चाली।
त्यारे ते लिच्छवी ज्या कोटिग्राम हतुं त्या गया।
कोटिग्राममा इच्छानुसार विहार करी ज्यां वैशालीनु महावन हतुं त्यां गया, त्या भगवान् बुद्ध वैशाली महावननी 'कूटागार शाला' मा विहार करता हता।
ते वसते घणा प्रतिष्ठित लिच्छवि 'संस्थागार' [प्रजातन्त्र-सभागृह ] मा बेठा हता, तेओ वधा वुद्धनी प्रशंसा करता हता, धर्म अने सघना गुणोतुं वर्णन करतां हता, ते वखते निग्रन्थोना श्रावक (जैन-श्रावक) सिंह सेनापति ते सभामां बेठ हता .... . .. .. ... ... .......
.....................। त्यारे सिंह सेनापति ज्यां निग्रन्थ (निग्गठ-नाथ पुत्त) ज्ञातपुत्र हता त्या गया, जइने 'निग्गठनाथपुत्त' ने कह्यु के हे पूज्य ! हू......... ...... । सिंह ! तारुं घर लावा समयथी निग्रन्थो माटे विसामारूप छे,...... .........ते समये घणा 'निग्ग' [जैन साधु] वैशालीमा एक.........लाबा कालथी आ आयुष्मान् (निग्गठ) वुद्ध............... ....... छे ।"
"एक समये भगवान् बुद्ध नादिकाना 'गिंजकावसथ' मा विहार करता हता [मज्झिमनिकाय पार्नु १२७]
"विनयपिटक' 'महावग्ग' तथा मज्झिमनिकायमा आवेला आ उल्लेखोथीं आपणने साफ साफ मालुम पडे छे के महात्मा बुद्ध-महावीर खामीनी जन्मभूमि कुंडग्राम (पाली भाषामा कोटिग्राम ) गया हता, अने कंडग्रामनी पासेनी वैशाली'
वीर. १२