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, वीरस्तुतिः।
5. - (१) जेमके शरीर शणगार, (२) पुष्ट पदार्थ- सेवन कर, (१३) गावं, वजावू, जोवं, सांभळवू, (४.) स्त्री संसर्ग करवो, (५). स्त्री सबंधी सकल्प विकल्प करवा, (६) स्त्रीना अग उपांग जोवा, (७) तेने जोवाना विचारो करवा, (८). पूर्वकृत भोगोनुं स्मरण करवू, (९) भविष्यमा भोगोनी चिन्तवणा करवी, (१०) वीर्य स्खलन करवु, . .
, आ दश मेद मैथुनना छे, ब्रह्मचारीने माटे ते सर्वथा त्याज्य छ। । - "जेवी रीते किपाक फळ देखवा-सुंघवा मा रमणीय छे, पण परिणामे हालाहल झेर समान छे, तेवींज रीते मैथुन पण थोडा वखत माटे रमणीय-सुदर अने सुखदायक मालुम पडे छे, परन्तु परिणामे अत्यन्त भयप्रद नीवडे छ ।" “जे पुरुष कामभोगोथी विरक्त बनीने सदा ब्रह्मचर्य पाले छे, तेणे भावशुद्धि माटे दश प्रकारना मैथुननो त्याग करवो जोइए, केम के आ दोषोना त्याग कर्या वगर भावशुद्धि-निर्मलता थती नथी, भावज कामना वेगने रोकी शके छे, कम्युं पण छे के
"सर्प करडेल माणसने सात वेग होय छे, परन्तु काम रूपी सर्पथी डंसायेल जीवने दश महा भयानक वेग होय छे, ते नीचे मुजब छ। ..
(१) कामना उद्दीपनथी चिंता उत्पन्न थाय छे, के काम भोगनी क्यारे प्राप्ति थशे, (२) जोवानी इच्छा उत्पन्न थाय छे, अने निश्वास मूके छे (३) अफसोस करे छे, के स्त्रीने जोई पण न शकाइ । (४) ज्वर आवे छे, तापमान वधे छे, (५) गरीर वळवा लागे छे, दाह उपजे छ (६) भोज, ननी रुचि नथी रहेती, (७) महा मूर्छा उत्पन्न थाय छे, जरा पण चेत रहेतु नथी, (८) उन्मत्त वनी जाय छे, जेम तेम वकवाद करे छ । (९) प्राण चाल्या जवानी शंका रहे छ। (१०) मृत्यु पण थई जाय छ। ,
, काम वासनाथी घेरायेलो जीव यथार्थ तत्व वस्तु स्वरूप समजी शकतो नथी, ज्यारे लोक व्यवहारनुं ज्ञान पण नाश पामे छ त्यारे परमार्थनुं ज्ञान तो क्याथी थाय 2 वधी वातोमा तेनुं मन अस्थिर वनी जाय छ। ' • "जेने काम रुपी कटक वागे छे, ते वेसवामा, सुवामा, चालवामा, फरवामा, भोजन करवामां अस्थिर वनी जाय छे।” “काम वासनावाळो पुरुप चतुर होवा छता मूर्व वनी जाय छे, क्षमाशील छता क्रोधी वने छ, शूरवीर कायर बने छ, महान् हलको वने छे, उद्यमी आळमु वने छे, अने जितेन्द्रिय भ्रष्ट बने ,"