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१६२ . वीरस्तुतिः। .... माराथी प्रतिकूळ सारं नथी लागतुं त्यारे बीजामओने तेमने प्रतिकूळ क्याथी सारं लागे? - "वधाने पोतानो प्राण प्रिय छे राज्य नहि"-पोताना प्राण बचाववानी खातर इष्ट मित्र अने राज्यने पण तृणनी समान छोडी दे छे, तेथीज कोईना प्राणनो नाश करवाथी जे पाप थाय छे. ते समस्त पृथ्वीनुं दान करवा छता दूर थई शकातुं नथी।
___ मरनारने भले राज्य आपो के सुवर्णना पहाड अर्पण करों परन्तु जीवतरनी पासे ते वस्तुओनो कंइ हिसाव नथी। तेथी ते सर्वने छोडीने जीवता रहेवानी अपील करे छ। - "जरा कांटो पगमा लागे छे तोते आखा शरीरमा भारे पीडा करे छे तो जे निरपराध जीवोने मोतने आरे पहोंचाही दे छे, ते मरनारना दु खोनी वेदना अनिर्वचनीय छ ।” . "अशरण, निरपराध, दुर्वलप्राणी बलवानना हाथे मराय छे, ते त्यांनी नीति ? हाय 1 कष्टनी साथे अमारे कहेवु पडे छे के जगत्मा अराजकता व्यापी गई छे, त्या न्यायने स्थान क्याथी मळे, जो कोई कोईने सभळावे छ 'तुं मरी जा' एम साभळनार पण आ साभळतां ज कंपी उठे छ, शरीर भय- ' भीत अने दुखी थई जाय छे। तो जे बीजाने कठोरता पूर्वक शस्त्रथी मारे छ त्यारे तेनी शी दशा थती हशे? तेना दु.खना अनुभव वगर तेनुं वर्णन कोण करी शके ?"
"हाथर्नु कपाईं सारं छे, पग वगरना रहेवामा पण कंइ खरावी नथी, पण शरीरना सम्पूर्ण अगोने प्राप्त करवा छतां 'हिंसकपुरुष' कोई कामनो नथी।" . स्वार्थ साधवानी हिंसा पण हानिकारक छे-"विघ्ननी शान्तिने माटे करेली हिंसा पण विघ्नने माटेज थाय छे। घणाओ एम कही ये छे केअमारा कुलनो आ रिवाज चाल्यो आवे छे । परन्तु ते कुलनु जराय भलु करी शकतों नथी । ते कुलना नाश माटेज थाय छे शान्तिने माटे नहि । पोताना वंधमा परम्परागत चालती आवेली हिंसाने जे प्राणी छोडी ये छे, अने शुद्ध अहिंसक बने छ, ते 'कालसूर कंसाई' ना पुत्र 'सुलस' नी पेठे सर्व मनुष्योमा पवित्र भने श्रेष्ट वने छ।” - . .