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" ,, , , वीरस्तुतिः।
ज्ञातृ-वंश और उनके जीवनके सम्बन्धका बहुतसा अज्ञानान्धकार जो कि अपने आसपास फैल गया है वह अन्धकार दूर हो जायगा ।
गुजराती अनुवाद-पोतानी तेमज अन्यनी पूर्ण उन्नति तथा मलाईने माटे जे परोपकार दृष्टिथी आपवामां आवे तेने 'दान' कहे छे, अथवा वस्तुपरथी पोतानो अधिकार छोडी दईने वीजा कोईने अधिकार आपवो ते पण 'दान' कहेवाय छे, परन्तु अहीं तो श्रद्धा अने प्रतीतिनी साथे भक्ति-भाव पूर्वक परिग्रह परनो ममत्व-भाव छोडीने कर्मोनी निर्जरा खातर अनुकम्पाथी तथा मन-वाणी-कायनी शुद्धि सहित फलनी इच्छा वगर दाता जे प्राशुक अने पवित्र वस्तु आपेछे तेने 'दान' कहे छ ।
ते दानना चार प्रकार-अन्नदान-औषधदान-अभयदान अने ज्ञानदान, ए दानोंमां प्राणिओनो भय दूर करी तेने सर्वथा निर्भय करवा ते सर्वोत्तम दान मनाय छ । भने आ मानवदेहमा दश प्राण छे, तेथी 'प्राणी' कहेवाय छे, जीवित रहेवानी इच्छा अथवा जीवित रहेवानो तेनो खभाव होवाथी तेनुं नाम 'जीव' पण छे, अने ए दश प्राण द्रव्य प्राण छे, अने ज्ञान-दर्शन-सुख-शक्ति रूप अनन्त-चतुष्टय भाव प्राण छ, वास्तविक रीते त्रणे कालमा आ प्राणोथी सदा आ जीव जीवित छे, सर्व जीवो जीववानी इच्छा राखे छे, मर कोई इच्छतो नथी, तेथी जीवित रहेवानी इच्छावाळाने अभय दान दईने तेनुं सर्वप्रकारे रक्षण करवु श्रेष्ठ छ । कोईने साचा दिलथी अभयदान पण आप्युं होत तो आ जीवनी मोक्ष थई जात, परन्तु आत्माने ज्ञानदान न मळवाथी पोताने जीववानुं स्वार्थ राख्यु, वीजा जीवोने पण जीवQ प्रिय छ ए भान भुलावी दीधुं । कोइए कडं पण छे के
"जे रीते मने मारं जीवन प्रिय छे, तेमज अन्य जीवोने पण पोतानुं जीवन प्रिय छे, स्वर्गमा रहेनार इन्द्र तेमज विष्टानो कीडो, महलमा वसनार भूपति तेमज झुपडीमां रहनार गरीव कठीभारो, ए दरेक जीवq इच्छे छे, तेम समजीने कोई पण प्राणीना मन नामा प्राणने पण निरर्थक कष्ट न देवू जोइए"।
अहिंसा परम धर्म छे-अहिंसा-परम धर्म छे, हिंसा सर्व जग्याए निंदाय छे, ते पोताने पण वधारे अप्रिय छे, तो वीजाओने पण अवश्य अप्रिय छे, कारण के पोतानी तेमज परनी मनोदशामां कंइ अन्तर नथी, तेथी चतुर मनुष्योनी सदा आ भावना रहे छ के कोई पण प्रकारे जगत्ना जीवोनुं कल्याण