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वीरस्तुतिः।
अम्बापालीवन म कर दिया था। वहा आवक था, उसे निम्रन्थ
की जन्मभूमि 'कुण्डग्राम'-पाली भाषामे 'कोटिग्राम' में गए थे। और कुण्डप्रामके पासकी वसनेवाली वैशाली नगरीमेंसे वहां महात्मा बुद्धको अम्बा. पाली नामक वेश्या और लिच्छवीक्षत्रिय मिलने आए थे। कोटिग्राम से म० बुद्ध जहां 'मातिका' 'ज्ञातृक' रहते थे वहा गए थे। और वहा 'जातिका' ज्ञातृकोंके 'गिंजिकावसथ'-ईंटोंके घरमें ठहरे थे। इस स्थानके पास ही एक अम्वापालीवन नामक उद्यान भी रहा है जिसे अम्बापालीने वुद्ध और उनके संघको समर्पण कर दिया था। वहा से म० बुद्ध वैशाली गए और वहा सिंह नामक सेनापति जो कि निर्ग्रन्थोंका श्रावक था, उसे अपना अनुयायी बनाया, सिंह सेनापति महात्मा बुद्धको मिलने जाने से पहले निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र महावीर प्रभुके पास अनुज्ञा लेने आया था। तव भगवान् महावीरने सिंह सेनापति को "तू क्रियावादी हो कर अक्रियावादी श्रमण गौतमके पास उसे मिलने क्यों जाता है ? यह कह कर न जानेकी सम्मति दी थी"। परन्तु वह अपनी इच्छानुसार श्रमण गौतमके पास गया और वह वहीं श्रमण गौतम बुद्धका अनुयायी होगया।
उपरोक्त उल्लेखसे हमारे विषयको पुष्ट करने वाली चार वातें जानने को विशेष तया मिलती हैं।
(१) वौद्रोंका कोटिग्राम* ही जैनोंका कुंड ग्राम मालूम होता है, इन दोनों नामोंमें शाब्दिक सादृश्यके अतिरिक्त उस ग्राम के पास 'ज्ञातृक'-ज्ञात वंशके क्षत्रियोंका निवास स्थान और वैशाली नगरीकी निकटता होनेके कारण ये दोनों वस्तुएं 'कुण्डग्राम' और वही 'कोटिग्राम' होनेकी मान्यता पुष्ट हो जाती है।
(२) कोटिग्रामके पास ज्ञातृकों का निवासस्थान, भगवान् महावीरका वंश 'ज्ञातृवंश' था यह और भी पुष्ट कर देता है, और साथ २ कुण्डग्रामके, आस पास 'ज्ञातृक'-'ज्ञातृवंश' के क्षत्रियोंके खंड-'उद्यान' थे, और वहां
• * वौद्धप्रन्योंमें कुंडग्रामका नाम कोटिगाम और भ० म० को ज्ञातिपुत्रके स्थान पर नातिपुत्र लिखा है । देखो "भारतका प्राचीनराजवंश" पृष्ठ ४० ले० विश्वेश्वरनाथ राय ॥