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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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___ "और जो साधु-सजन पुरुष राग, द्वेष और मोहसे असत्य बोलनेके __ परिणामको जव छोडता है, तब ही दूसरा सत्याणुव्रत होता है, क्योंकि , असत्य
वोलनेका भाव सत्य भावसे विपरित होता है, और यह असत्य भाव राग भावसे, द्वेष भावसे और मोह भावसे जीवमें पैदा होता है, अर्थात् यह मनुष्य इप्टे पदार्थों में व विषयोमें राग द्वारा उनकी प्राप्ति और रक्षाके लिए असत्य कहता है, वह अनिष्ट पदार्थोंमें वा विषयोंमें द्वेषपूर्वक उनके दूर होनेके लिए या उनका सम्बन्ध न पानेके लिए असत्य कहता है, अथवा मिथ्या बुद्धिसे ससारमें मोहके कारण उस मिथ्या भावकी रक्षाके अर्थ असत्य बोलता है, जो कोई निकट भव्य जीव साधु पुरुष इस प्रकारके असत्य बोलनेके परिणामोंको त्याग देता है उसी में सत्य व्रतकी योग्यता आती है।"
"जो सत्यभावके रग रग कर प्रगटमें सत्यका व्यवहार करता है वह सजनोंद्वारा आदरणीय होता है, यह बात इस लिए सर्वथा सत्य है कि सत्य से बढ कर अन्य दूसरा कोई व्रत नहीं।"
असत्य बोलने का निकृष्ट परिणाम-"झूठ बोलनेवाला गूंगा बनता है, या उसे मूकगति का जीव बनना पडता है। वह स्पष्ट नहीं बोल सकता। किसीको उसकी सुन्दर सम्मति मी प्रिय नहीं लगती। मुखरोगसे पीडित रहता है। ये सब झूठ बोलनेके दुष्परिणाम जान कर कन्यादिके विषयमें असत्य कमी न वोलना चाहिए।" "झूठ बोलने वाले, मूर्ख, विकलांग, वाणीहीन रह जाते हैं। उनकी बातें सुन कर लोकों को घृणा हो उठती है।
और उनके मुखसे दुगंध आया करती है।" "जो सर्वलोक से विरुद्ध है, जिस वाणीसे विश्वासघात हो जाता है, जो पुण्यका प्रतिपक्षी है वह ऐसा वाक्य कभी न कहे।" "जो झूठ बोलता है उसमें तुच्छता आजाती है, अपने आपको ठग लेता है, अधोगतिगामी होता है, अत झूठ वर्जनीय है।" "झूठ प्रमादसे भी न बोलना चाहिए, क्योंकि कल्याणकार्यरूपी वृक्ष असत्यकी आधीसे गिर जाते हैं।" "भूत, भविष्यत् , वर्तमानकी वातोंकों यदि पूर्णतया न जानता हो तो न कहे, कि इस तरह होगा।" "तीनों कालकी बातोमें शका हो तो उसे न कहे।" "यदि तीनों कालकी बातें बिलकुल निश्शंक हैं तव उन्हें लोकोंमें उपदेशके रूपमें सुना सकता है।" "असत्य बोलनेसे वैर विरोध वढ जाते हैं, पोल खुल जाने पर पछतावा होता है।
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