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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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नीललेश्या
जेनामा क्रोध-मान-माया-लोभ-राग-द्वेष-मोह-शोक-भय-जुगुप्सा होय, नृशं. सता क्रूरता-हिंसकता होय, चाण्डालवृत्ति होय, चोर-मूर्ख-स्तब्ध होय, वीजाओनो तिरस्कार करतो होय, निद्रानी अधिकता-कामासक्ति-मंद बुद्धि-जडता होय, सत् असत्मां अविवेकी होय, महाआरम्भ-महामूर्छा मोह होय, आ लक्षणो वाळो जीव नीललेझ्या वाळो जाणवो । . कापोती लेश्या
शोक-भय-ईर्षा -मत्सर-अन्यनी निन्दा, पोतानी प्रशंसा तथा पोतानी कोई प्रशंसा करे तो प्रसन्न थर्बु, आत्माना हानि लाभने न समजे, ख. परमा विपर्यय बुद्धि होय, अहंकारग्रस्त-सारी नरसी सर्व प्रकारनी क्रियाओ करी बेसे, पोतानी स्तुति 'साभळीने सर्वस्व पण आपी दे, लडाईमा मरवानी इच्छा राखे। आ लक्षणो वाळो जीव कापोती लेश्या वाळो समजवो ।
तेजोलेश्या___ आ लेश्यावाळो समदृष्टि होय छे, अधिक मात्रामा द्वेष नथी करतो, अन्यना कल्याण अकल्याणनो विचार करे छे । पोताना बुद्धिबलथी युक्त अयुक्तनुं ज्ञान विचारे छ। कोई अन्यनी शोचनीय दशा पर तेने दया आवे छ । चातुर्यतापूर्ण तेमज अनिंद्य व्यापार होय छ । आ पीतलेझ्याना लक्षण छ । । पद्मलेश्या
कर्मनी निर्जरा करीने पवित्र तथा कर्मरहित वनवानी इच्छा होय । सुपात्रे दान दईने सहजानन्द लूटे। आन्तर तेमज वाह्य व्यवहार जेनो अत्यन्त मृदु अने सरल होय । आत्मामा हमेशा विनय अने नम्रता होय । शत्रुपर पण प्रेम राखे । आत्मज्ञान प्राप्तिनो जेनो ध्येय होय। सच्चरित्र पालक साधक होय, नीति युक्त क्रियावन्त होय । आ पद्मलेश्या वाळानां लक्षणो छ । शुक्ललेश्या
अमिमान लेशमात्र पण न होय, पोताना चरित्रनुं फळ मागवानी अभिला. षारूप निदान न करे, निष्पक्षपाती होय, सम्यक् ज्ञाननी पूर्णता होय, राग द्वेषनो अत्यन्त अभाव होय, समाधि तेमज अध्यात्मिकतामां स्थिर होय, आस्तिक्य होय, आ लक्षणो शुक्ललेश्याना जाणवा ।
वीर. ७