SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ गवर्नरोंकी इच्छानुसार नादिरशाही ही चलने दी जाय । पहले इस कमेटीका सभापति एक दूसरा पुरुष था; परन्तु उसे कमेटीका यह विचार पसन्द न आया कि जमैकाके गवर्नरपर मुकद्दमा दायर किया जाय, इसलिए वह जुदा हो गया और मिलको एकाएक कमेटीका सभापति बनना बड़ा । बस फिर क्या था, पारलियामेंटमें जो गवनरके पक्षके सभासद थे वे उसको लक्ष्य करके ऐसे ऐसे प्रश्न करने लगे जिससे वह चिढ़े। परंतु वह इसकी कुछ भी परवा न करता था और शान्तिसे उनका जैसा चाहिए वैसा उत्तर देता था। 'जमैका कमेटी'ने जुदा जुदा कचहरियोंमें बहुत कुछ प्रयत्न किया, परन्तु अन्तिम न्याय ज्यूरियोंके फैसलेपर अवलम्बित था और ज्यूरी मध्यम श्रेणीके लोगोंमेंसे चने गये थे-वे निष्पक्ष न थे। इसलिए उसे जैसी चाहिए वैसी सफलता न हुई। लोगोंकी साधारण समझ यही थी कि बेचारी हबशी प्रजापर अपने यहाँके गोरे गवर्नरने यदि जुल्म भी किया हो, तो भी उसपर फौजदारी मुकद्दमा चलाना ठीक नहीं है । परन्तु मिलने अपने प्रयत्नसे यह सिद्ध करके दिखला दिया कि इंग्लैंडमें ऐसे लोगोंकी भी कमी नहीं है जो दुर्बल और अनाथ प्रजापर भी किये हुए अन्यायको नहीं सह सकते हैं और इस तरह उसने अपने देशकी बहुत कुछ लाज रख ली। इस मामले में यद्यपि ज्यूरियोंने गवर्नर और उसके आज्ञाकारी साथियोंको अपराधी नहीं ठहराया; परन्तु चीफ जस्टिस ( न्यायाधीश ) ने जब ज्यूरियोंके सामने सारे सुबूतोंका सार पेश किया, तब साफ साफ कह दिया कि वास्तवमें कानून वैसा ही है जैसा जमैका-कमेटी ( वादी ) कहती है । यद्यपि गवर्नर साहबको कोई प्रत्यक्ष दंड नहीं मिला-इलजामसे वह बरी हो गया तो भी इस बातका अनुभव उसे अच्छी तरहसे हो
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy