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________________ ६३ उसने इस विषयमें दो निबंध लिखे और उनमें काम्टीके सिद्धान्तोंकी बहुत ही पाण्डित्यपूर्ण समालोचना की। इसमें उसने काम्टीके सिद्धान्तोंका इतिहास, उनका महत्त्व, उनकी उत्तमता-अनुत्तमता आदि बातोंका पक्षपातरहित होकर प्रतिपादन किया । कुछ समय पीछे ये निबन्ध पुस्तकाकार भी प्रकाशित किये गये । तीन ग्रन्थोंके सस्ते संस्करण । इंग्लैंडके मजदूरोंने मिलके कई ग्रन्थोंपर मुग्ध होकर उससे प्रार्थना की कि आप अपने अमुक अमुक ग्रन्थोंको जितने सस्ते हो सकें उतने सस्ते करनेकी कृपा कीजिए । तदनुसार उसने सन् १८६५ में अपने ' अर्थशास्त्र,' 'प्रतिनिधि-सत्ताक राज्यपद्धति' और 'स्वाधीनता' इन तीन ग्रन्थोंके सस्ते संस्करण छपाकर प्रकाशित किये । ये तीनों ही ग्रन्थ मजदूरोंकी समझमें आने योग्य सुगम और उपयोगी थे । इन आवृत्तियोंके मूल्यमें मिलने बिलकुल मुनाफा नहीं रक्खा । सब ग्रन्थ लागतके दामोंपर बेचे गये । यद्यपि इस कार्यमें आर्थिक दृष्टिसे मिलको बहुतसी हानि उठानी पड़ी; परन्तु इन सस्ते संस्करणोंके प्रकाशित होनेसे उक्त ग्रन्थोंकी इतनी प्रसिद्धि हुई कि आगे उक्त ग्रन्थोंके प्रकाशक उसे अपने मुनाफेका कुछ हिस्सा खुशीसे देने लगे। पारलियामेंटकी मेम्बरी। वेस्ट मिनिस्टरके लोगोंने, सन् १८६५ में, मिलसे प्रार्थना की कि आप हमारी ओरसे पारलियामेंटकी मेम्बरीकी उम्मेदवारी कीजिए। ___ इसके दसवर्ष पहले आयलेंडकी ओरसे भी इसी प्रकारका आमंत्रण आया था। क्योंकि उस समय वहाँकी भूमिके सम्बन्धमें एक • उलझनका प्रश्न खड़ा हुआ था । उसके विषयमें मिलका मत उनके
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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