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________________ . बात कभी कभी मिलको खटकती भी थी; परन्तु स्त्रीवियोगकी उदासीनताके कारण उसका यह सिद्धान्त हो गया था कि मैं यदि अब यत्न करूँगा भी, तो भी इस कमीको पूर्ण न कर सकूँगा। स्वाधीनताका समर्पण उसने अपनी स्त्रीको ही किया है । यह समर्पण बहुत विलक्षण है । मिलने उसमें अपनी स्त्रीकी प्रशंसाकी हद कर दी है। स्वाधीनताकी उत्तमता और उपयोगिता । मिलके सब ग्रन्थोंमें, तर्कशास्त्रको छोड़कर, स्वाधीनता ही सबसे अधिक चिरस्थायिनी रचना है। क्योंकि इसमें उसके और उसकी स्त्रीके मानसिक विचारोंका संयोग हुआ है और एक महासिद्धान्तपर मानो यह एक सटीक सूत्र-ग्रन्थ बन गया है । वह महासिद्धान्त यह है,-" अनेक स्वभावोंके मनुष्य उत्पन्न होने देना और उनके स्वभावोंको अनेक तथा परस्पर-विरुद्ध दिशाओंकी ओर बढ़ने देना व्यक्ति और समाज दोनोंके लिए हितकारी है। " समाजमें इस समय जो बनाव-बिगाड़ हो रहे हैं जो क्रान्ति हो रही है-उसकी ओर देखनेसे इन सिद्धान्तोंको और भी अधिक दृढ़ता प्राप्त हो जाती है। जिस समय यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ उस समय वे लोग जिन्हें अन्तर्दृष्टि न थी-जो केवल ऊपर ही ऊपर देखते थे-कहने लगे कि वर्तमान समयमें ऐसे ग्रन्थकी आवश्यकता न थी । परन्तु वास्तवमें इस सिद्धान्तके प्रतिपादनका लोगोंके चित्तपर बड़ा प्रभाव पड़ा और, पड़ना ही चाहिए । क्योंकि इस सिद्धान्तकी नीव बहुत गहरी है । __ जैसे जैसे सुधार होता जाता है तैसे तैसे सामाजिक समता और लोकमतकी प्रबलता बढ़ती जाती है और इससे आचार-विचारकी समताका अत्याचारी जूआँ मानव-जाति के कंधेपर रक्खे जानेका भय
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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