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ही उक्त कुटुम्बका सारा दृश्य मिलकी आँखोंके सामने आ गया और तत्काल ही उसकी आँखोंसे दो चार आँसू टपक पड़े । वस, उस दिनसे उसको अपना दुःख कुछ हलका मालूम होने लगा । अभी तक उसका विश्वास था कि मैं केवल एक प्रकारका यंत्र हूँ, जो बोलता चालता, लिखता पढ़ता और विचार करता है । मुझमें मनोभावों या मनोविकारोंका लेश भी नहीं है। परन्तु अपनी आँखोंसे अचानक आँसू पड़ते देख अब उसे अनुभव होने लगा कि मैं पत्थर अथवा मिट्टीका ढेला नहीं; किन्तु मनोविकारसम्पन्न मनुष्य हूँ। इस प्रकारका विश्वास होनेसे अब उसे प्रतिदिनके कामोंमें थोड़ा बहुत सुखबोध होने लगा।
इस स्थितिके दो परिणाम । इस स्थितिके, मिलके चित्तपर, दो परिणाम हुए। अभीतक उसका यह खयाल था कि कौन आचरण अच्छा है और कौन बुरा है, इसका निर्णय सुखकी ओर लक्ष्य रखके करना चाहिये । अर्थात् जो आचरण चिरस्थायी सुख उत्पन्न करनेवाला हो वह अच्छा और जो न हो वह बुरा । इस प्रकारके अच्छे आचरणोंसे सुखकी प्राप्ति करनेमें जन्मकी सार्थकता है । उसका दूसरा खयाल यह था कि सुखके लिये सुखके पीछे लगना चाहिये, इसी तरह वह प्राप्त होता है। यह दूसरा खयाल अब बदल गया । उसे अव यह अनुभव होने लगा कि जो अप्रत्यक्ष सुख दूसरोंका उपकार करनेसे, मनुष्य जातिका सुधार करनेसे, और किसी विद्या या कलाके सीखनेमें मन लगानेसे मिलता है वह केवल सुखके पीछे लगनेसे नहीं मिलता। इस लिये मुझे किसी दूसरे ही अभिप्रायसे कोई काम करना चाहिये। ऐसा करनेसे सुख आप ही आप प्राप्त हो जाता है। यह एक परिणाम हुआ। उस के चित्तपर दूसरा परिणाम यह हुआ कि मनुष्यका जो अन्तरात्मा है उसको शिक्षा देना भी मुखका आव