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________________ ११ बातका कायल नहीं था कि किसी वास्तविक विचारका व्यवहारमें कुछ परिवर्तन कर डालना चाहिये । उसने उक्त ' तत्त्वत:' शब्दको लेकर एक लम्बा चौड़ा व्याख्यान दे डाला और मिलको समझा दिया कि तुम्हारा यह खयाल बिलकुल गलत और कमजोर है । आगे तुम्हें ऐसी अज्ञानताकी बात न कहनी चाहिये । मुझे इससे बहुत दुःख हुआ है 1 यदि कोई लड़का छोटी उम्र में विद्वान् हो जाता है तो उसे सहज ही कुछ अहंकार आ जाता है। इससे उसकी विद्यावृद्धिपर पानी फिर जाता है | अपनी विद्वत्ताके घमंड में आकर वह और उन्नति नहीं कर I सकता । मिलका पिता इस विषयमें बड़ी ही खबरदारी रखता था । उसने जबतक मिलको पढ़ाया, तबतक कभी उसकी भूलकर भी प्रशंसा नहीं की । मिलको कभी इस बातका खयाल ही नहीं हो पाया कि मैं अपनी उम्रके दूसरे लड़कोंसे कुछ जियादा पढ़ा हूँ । वह जिस समय यूरोपकी यात्राको निकला उस समय जेम्सने उससे कहा - "बेटा, तूं अपने प्रवास में देखेगा कि तुझे जिन जिन विषयों का ज्ञान है तेरी उम्र के दूसरे लड़कोमें उनकी गन्ध भी नहीं हैवे उनसे सर्वथा अनभिज्ञ हैं । परन्तु खबरदार, तू इसका कभी गर्व न करना । तुझे जो इतना ज्ञान हो गया है, इसका कारण तेरी विलक्षण. बुद्धि नहीं किन्तु मेरी सुशिक्षा है । " मिलके पिता के धार्मिक विचार | मिलके जीवनकी एक बहुत विचारणीय बात यह है कि उसको किसी भी धर्मकी शिक्षा नहीं दी गई। दूसरे लोगों की जीवनियों में अकसर यह बात देखी जाती है कि बालपनमें उसका किसी न किसी
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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