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स्वच्छ मन : उदार विचार
नबीनता में रग सज्जनो, हमार विचारा मे सदा नवीनता भानी चाहिए । मलार का यह अटल नियम है कि कोई वस्तु कितनी ही उत्तम से उत्तम क्यों न हो, परन्तु कुछ दिनो के पश्चात् उसका आकर्षण ममाप्त हो जाता है और यदि कोई नवीन वस्तु दृष्टिगोचर होती है तो उस ओर आफर्पण हो जाता है। संस्कृत की एक उक्ति है कि 'लोको ह्यभिनवप्रिय' अर्थात् ससार को नयी वन्नु प्रिय होती है। आप लोग प्रति दिन गर्म फूलके मोर बटिया शाम पाते हैं। यदि किसी दिन आपकी थाली में थूली या बाजरे-माकी की रोटी माती है, तो पहले आप उमे माते है, क्योकि वह नवीन है। इसी प्रकार नदीन वन पहनने में भी अधिक आकर्षण होता है। नया मकान, नया मित्र, नया शस्त्र और नया शास्न भो हस्तगत होने पर आनन्द प्राप्त होता है। इसी प्रकार हमारे भीतर आध्यात्मिकता के भी नये-नये भाव आने चाहिए। आप प्रतिदिन नामायिक करते है, नवकारमी-पोरसी करते हैं और उपवास आयबिल भी करते हैं, परन्तु यदि इनमे नित्य नवीनता नही आवे तो उनके करने मे आकर्पण नहीं रहता है । अव एक विशेष ज्ञानी ने आपसे कहा-भाई, आप सामायिक करते है, यह तो बहुत अच्छी बात है । परन्तु यदि एक आसन लगाके वैठकर या खडे होकर करोगे तो आनन्द आयेगा । आपने उसकी बात को स्वीकार करके तदनुसार सामायिक करनी प्रारम्भ कर दी, तो आपको अवश्य आनन्द आयेगा,
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