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एकता व संगठन के क्षेत्र में वे एक महत्वपूर्ण कड़ी की भांति स्थानकवासी श्रमण संघ में सदा-सदा से सन्माननीय रहे हैं । समाज सेवा के क्षेत्र में उनका देय बहुत बड़ा है | राजस्थान के अंचलों में गांव-गांव में फैले शिक्षाकेन्द्र, जानभंडार, वाचनालय, उद्योगमन्दिर, व धार्मिकसाधना केन्द्र उनके तेजस्वी कृतित्व के बोलते चित्र है । विभिन्न क्षेत्रों मे काम करनेवाली लगभग ३५ संस्थाएं उनकी सद्प्रेरणाओं से आज भी चल रही हैं, अनेक संस्थाओं, साहित्यिको, मुनिवरों व विद्वानों को उनका वरद आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है | वे अपने आप में व्यक्ति नहीं, एक संस्था की तरह विकासोन्मुखी प्रवृत्तियों के केन्द्र है ।
मुनिश्री आशुकवि है । उनकी कविताओं में वीररस की प्रधानता रहती है, किन्तु वीरता के साथ-साथ विरक्ति, तपस्या और सेवा की प्रवल तरंगे भी उनके काव्य-सरोवर में उठ उठ कर जन-जीवन को प्रेरणा देती रही हैं ।
श्री मरुधरकेसरी जी के प्रवचनों का विशाल साहित्य संकलित किया पड़ा है, उसमें से अभी बहुत कम प्रवचन ही प्रकाश में आये हैं । इन प्रवचनों को साहित्यिक रूप देने में तपस्वी कविरत्न श्रीरूपचन्द जो म० 'रजत' का बहुत बड़ा योगदान रहा है । उनको अन्तर् इच्छा है कि मरुधर केसरी जी म० का सम्पूर्ण प्रवचन साहित्य एक माला के रूप में सुन्दर, रुचिकर और नयनाभिराम ढंग से पाठकों के हाथों में पहुंचे । श्री 'रजत' मुनि जी की यह भावना साकार होगी तो अवश्य ही साहित्य के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कृतियां हमें प्राप्त हो सकेगी । विद्याप्रेमी श्री सुकन मुनिजी की प्रेरणाओं से इन प्रवचनों का संपादन एवं प्रकाशन शीघ्र ही गति पर आया है, और आशा है भविष्य में भी याता रहेगा |
मुझे विश्वास है, प्रवचन सुधा के पाठक एक नई रणा और कर्तव्य को स्फूर्ति प्राप्त कर कृतार्थता अनुभव करेंगे ।
- श्रीचन्द सुराना 'सरस'