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आत्म-विजेता का मार्ग
उन्होंने कहा महाराज, आप मुझे कसे पहिचानते हैं ? उन्होंने कहा--भंडारी जी आप मुझे पहिचानते हैं और मैं आपको पहिचानता हूं 1 परन्तु वेप का परिवर्तन होने से आपने मुझ नहीं पहिचाना । तब खींवसीजी बोले-महाराज, . आपका परिचय? तब भूघरजी महाराज बोले--जब साधु हो गया; तब क्या परिचय देना ? मेरा भी जन्म मारवाड़ का है । तब खींवसीजी बोले-~-महाराज, परिचय तो पीछे लंगा । परन्तु पहिले मुझे यह बतलाइये कि क्या पुरुष के भोग के बिना भी स्त्री के गर्भ रह सकता है ? उन्होंने कहा- हां भंडारीजी, पांच कारणों से गर्म रहता है । यह सुनते ही उनकी आंखों में रोशनी आगई। उन्होंने पूछा-वे पाच कारण कौन से हैं ? तब धन्नाजी महाराज ने कहा---
पहिला यह कि जिस तालाव, नदी, हौज आदि के स्थान पर पुरुप स्नान करते हों, उस स्थान पर स्त्री के स्नान करने से स्त्री के गर्भ रह जाता है। क्योंकि उस स्थान के जल में यदि पुरुष के वीर्य-कण मिले हुए हों और यदि स्त्री वहां पर नग्न होकरके स्नान करे तो वे वीर्य-कण योनिमें प्रवेश कर जाते हैं और उससे उसे गर्भ रह सकता है ।
दूसरा यह कि स्त्री को खुली छत पर नहीं मोना चाहिए। क्योंकि वायु से उड़कर आये हुये वीर्य-कण यदि अन्दर प्रवेश कर जावे तो गर्म रह सकता है।
तीसरा यह कि किसी स्थान पर पुरुष का वीर्य पड़ा हो और उसी स्थान पर ऋतुमती स्त्री बैठ जाय, तो भी गर्म रह सकता है।
चौथा यह कि दैवयोग से भी गर्भ रह सकता है। और पांचवां कारण तो सभी जानते हैं कि पुरुष के साथ संयोग होने पर गर्म रहता है।
ये सब वातें विलकुल नवीन थीं। इससे पहिले कभी उन्होने ऐसी बातें नहीं सुनी थी। अतः खीवसीजी बोले. महाराज, इन बातों का कोई शास्त्रीय आधार भी हैं, या केवल सुनी-सुनाई कह रहे है। तब भूधरजी ने कहा-- स्थानाङ्ग सूत्रजी के पांचवें ठाणे में यह वर्णन आया है। और वेद-स्मृति के पांचवे श्लोक में भी यह वर्णन है । तब आनन्द से विभोर होकर खीवसीजी बोले-~महाराज, यह बात तो आपने बड़े मार्क की बताई। मेरी जो शंका थी, वह आपने दूर कर दी। परन्तु प्रमाण पक्का होना चाहिए। भूधरजी महाराज बोले-प्रमाण पक्का ही है, इसमें आप किसी प्रकार की शंका नहीं करें। उन्होंने आगे बताया कि प्रारम्भ के तीन कारणों से यदि गर्भ रहता है, तो उसके शरीर में हड्डियां नहीं होती हैं । अन्तिम दो कारणों से गर्म रहने पर हड्डियाँ होती हैं। यह सुन कर खीवसी जी बोले- यह वात आपने