SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-मुथा है। तब बादशाह दरवार में जाकर तस्त पर जा विराजे और ममी औलिया, फकीर, मौलवी और पडिनो यो बुलवाया। उनके आने पर वादगाह में उन मवसे पूछा कि क्या विना हराम किये भी किसी को गर्भ रह साता है ? रह बात सुनकर भय लोग भाश्चर्यचकित होकर बोने---हुजूर, यही चिना हराम के भी गर्भ रह सकता है ? यह सब जानते है कि विना राम में गर्म नहीं रहता । तब बादशाह ने हरम दिया विशहजादी का सिर पर जमा में डाल दिया जाय । जैसे ही बादशाह ने यह हाम दिया, मे ही खीवमीजी का आना हो गया। वे बोले-जहापनाह, आपने यह क्या हुक्म दिया है ? बादशाह ने कहा-इम दुराचारिणी शहजादी ने मेरे शानदान को बदनाम कर दिया है। अब खीवमीजी बोले-जहापनाह, आप थोड़ी भी खामोशी रविये। शहजादी से भूल हो सकती है। परन्तु उने छिपाने की भी कोशिश करनी चाहिए । वादशाह बोले-ऐमा नहीं हो सकता। तब सीवनीजी ने कहा-हुजूर, मेरी प्रार्थना है कि एक बार मुझे उसे देखने का मौका दिया जाय । पहिले तो वादशाह ने कहा-उम नापा का क्या मुह देखते हो? परन्तु अधिक आग्रह करने पर मिलने के लिए इजाजत दे दी। वे शहजादी के महल मे गये और उन्होने उसके सब अगो के ऊपर नजर डाली तो देखा कि किसी भी अग में कोई विकार नहीं है । अगो की जान से उन्हें विश्वास हो गया, कि इसके गर्भ किसी के साथ हराम करन में नहीं रहा है किन्तु किसी दूसरे ढग से रहा है। उन्होंने इसके वावत शहजादी से भी पूछताछ की। मगर उसने कमम खाकर कहा कि मैंने कोई दुराचार नहीं किया है। तब भडारीजी ने आकर बादशाह से कहा- हुजूर, उसने कोई अनाचार नही किया है। बादशाह ने कहा- यह तुम कसे कहते हो ? भडारी जी ने कहा----मैंने उसके नर्व अगा की परीक्षा करके देग्न लिया है कि यह हराम का गर्भ नहीं है, किन्तु किसी अन्य कारण से रहा हुआ गर्भ है। जब बादशाह ने इसका प्रमाण मागा तो उन्होने कहा- हुजूर, मैं इसका शास्त्रीय प्रमाण सेवा में पेश करुगा। इमी बीच मालवा की ओर जाने का कोई जरूरी काम आगया तो खीवसीजी दो हजार सवार लेकर उधर जा रहे थे। रास्ते म पादस्ल नाम का गाव आया। वहा पूख्य धन्नाजी महाराज विराजे हुए थे और भूधरजी भी उनकी मेवा में थे। खीवसीजी ने वहा डेरा उलवा दिया और उसी फोजी वेप म कुछ जवानो के साथ उनके दर्शन-वन्दन के लिए गये । भूधरजी महाराज की दृष्टि उन पर पड़ी। उन्होने कहा-अरे, भडारी जी, आप यहा पैसे ?
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy