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________________ प्रवचन सुधा इसी प्रकार महाराज जसवन्तसिंह को हाड़ा रानी लड़ी किले में लालशाही को तोड़ दिया । इसलिये पिताजी, आप नारियों को अवला और मूर्खा न समझें । समय-समय पर उन्हें वहां पर अपना करतब दिखाया है, जहां पर कि बड़े-बड़े मर्दों ने घुटने टेक दिये थे । लड़की की बात सुनकर सन्तोष की सांस लेते हुए दीवान ने पूछा वेटी, वता, इसके लिये तुझे किस साधनसामग्री की आवश्यकता है | उसने कहा- मुझे किती साधन-सामग्री को आवश्यकता नहीं है । आप केवल उन मुसाफिरों को आज की रात में बारीबारी से मेरे साथ चौपड़ खेलने के लिए भेजने की व्यवस्था कर दीजिये । मैं बाज रात में ही असली माणिक को निकाल करके आपके सामने रख दूंगी | दीवान ने उन चारों मुसाफिरों को चौपड़ खेलने को जाने के लिए निमंत्रण दे दिया और रात्रि का एक-एक पहर उनके लिए निश्चित कर दिया । ३८ दीवान ने अपने खाने में गलीचा विछवा दिया, गादी तकिए लगवा दिये और सबसे पहले उन चारों में से राजकुमार को चौपड़ खेलने के लिए बुलाया 1 राजकुमार आया, और दीवानखाने में अकेली लड़की को देखकर बोलासुश्री, आप यहाँ अकेली हैं और मैं भी अकेला हूँ । अतः यह तो शंका जैसी चीज है ? लड़की ने कहा- आप इसकी जरा भी शंका मत कीजिए । जो शुद्ध हृदय के स्त्री-पुरुष हैं, उनके साथ खेलने में शंका की कोई बात नही है | लव दोनों चौपड़ खेलने लगे । जब खेलते हुए एक घन्टा बीत गया, तब लड़की ने एक कहानी सुनाना प्रारम्भ किया । वह बोली- कुँवर साहब, एक लड़की बचपन में एक स्कूल में पढ़ती थी । लड़के और लड़कियां भी पढती थीं । उसका एक लड़के से गया तो एक दिन उसने उससे कह दिया कि मैं तेरे साथ लड़के ने कहा -- यह तेरे हाथ की बात नहीं है। मां-बाप की जहां मर्जी होगी, शादी तो वहीं होगी । तव लड़की ने कहा -- मां-बाप जहां करेंगे, सो तो ठीक है । परन्तु फिर भी शादी होने के वाद पहिली रात मैं तुम्हारे पास जाऊँगी । इस प्रकार उसने उस लड़के को वचन दे दिया । जब वह पति के घर पहुंची तो उसने रात्रि के साथ मे अनेक अधिक स्नेह हो शादी करूंगी ! प्रथम पहर में अपने धनी से कहा--- पतिदेव, मेरी एक प्रार्थना है कि वचपन में जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, तब अपने एक सहपाठी को मैंने ऐसा वचन दे दिया था कि शादी को पहली रात मैं तुम्हारे पास आऊँगी । यह सुनकर पति ने सोचा कि यदि यह दुराचारिणी होती, तो ऐसी बात मेरे से न कहती । यह कुलीन लड़की है । यद्यपि इसे ऐसा अनुचित वचन नहीं देना चाहिए था । फिर भी जब वह अपना वचन पूरा करने के लिये पूछ रही है, तब इसे
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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