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उदारता और कृतज्ञता
दण्ड दिया जायेगा । पहिले राठौड़ी राज्य था। और राजाओं का नादिरशाही हुक्म हुआ करता था।
वि० सं० १६७४ की साल जोधपुर में प्लेग का प्रकोप हुआ। उस समय महाराजा सुमेरसिंह जी ने राज्य के सारे बंगले खुलवा दिये और माईर लगा दिया कि यदि जनता की कोई भी चीज चली गई तो अधिकारियों की खबर ले ली जायगी। उनके इस सख्त आर्डर से किसी की कोई भी चीज नहीं गई। उस समय राजाओं का ऐसा ही तेज था और उसी से राज के सब काम काज चलते थे। आज के समान उस समय अन्धेर नहीं था कि दिनदहाड़े, संगीनवद्ध पहरा लगा होने पर भी बैंकों से लाखों रुपये लूट लिये जाते हैं और फिर भी कुछ पता नहीं चलता है ।
हां, तो प्रधान ने चुपचाप आदेश को स्वीकार किया और चिन्तातुर होकर वह घर पहुंचा। भोजन के समय जब थाल परोम कर उसकी लड़की ने सामने रखा, तो उसका हाथ ही खाने के लिये नहीं उठा । उसे तो आसमान के तारे नजर आ रहे थे। भाई सातभयों में से मरणभय ही सबसे बड़ा भध है । दीवान साहब को इतना चिन्तित देखकर लड़की ने पूछा--पिताजी,
आज आप इतने चिन्तिन क्यों हैं ? उसने कहा-~-बेटी, क्या बताऊँ ? दो दिन का और जीवन है। तीसरे दिन तो मरना पड़ेगा। लड़की के बाग्रह पर दीवान ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। और कहा कि राजा का हुक्म है कि विना पछताछ किये और मुसाफिरों के सामान की खानातलाशी लिये विना ही माणिक नाना चाहिये। अन्यथा तीसरे दिन मृत्युदण्ड दिया जायगा। अब तू ही बता, उस माणिक का निकल आना कैसे संभव है। यह सुनकर लड़की बोली पिताजी, यह तो साधारण बात है। इसके लिये आप कोई चिन्ता न करें। मैं एक दिन में ही माणिक निकाल दूगी । दीवान बोला-बरी, जव मेरी बुद्धि काम नहीं दे रही है, तब तू कसे उसे निकालेगी? लड़की बोलीपिताजी, भारत पर अनेक नरेशो ने शासन किया है. परन्तु महारानी विक्टोरिया के समान किसने राज्य को संभाला? युद्ध के मैदान में अनेकों शूरमा लड़ें। परन्तु झांसी वाली रानी लक्ष्मीबाई के समान कौन लड़ा? जिसने अंग्रेजों के छक्के छुडा दिये थे और जिसकी आज भी बुन्देल खण्ड में यशो गाथा गाई जाती है कि
खूब लड़ी मर्दानी बह तो झासीवाली रानी थी। बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।