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प्रकाशकीय
ज्ञान मनुष्य की तीसरी आंख है । यह आंख जन्म से वहीं, किन्तु अभ्यास और साधना के द्वारा जागृत होती है । कहना नहीं होगा, इस दिव्य नेत्र को जागृत करने में सद्गुरु का सहयोग अत्यन्त अपेक्षित है । सद्गुरु ही हमारे इस दिव्य चक्षु को उद्घाटित कर सकते हैं । उनके दर्शन, सत्संग, उपदेश और प्रवचन इसमें अत्यन्त सहायक होते हैं । इसलिए सद्गुरुओं के प्रवचन सुनने और उस पर मत्तन करने की आज वहुत आवश्यकता है ।
बहुत से व्यक्ति सद्गुरुदेव के प्रवचन सुनने को उत्सुक होते हुए भी वे सुन नहीं पाते । चूंकि वे सुदूर क्षेत्रों में रहते हैं, जहां सद्गुरुजनों का चरणस्पर्श मिलना भी कठिन होता है ।
ऐसी स्थिति में प्रवचन को साहित्य का रूप देकर उनके हाथों में पहुंचाना और भगवद्द्द्वाणी का रसास्वादन करवाना एक उपयोगी कार्य होता है । ऐसे प्रयत्न हजारों वर्षों से होते भी आये हैं । इसी शुभ परम्परा में हमारा यह प्रयत्न है श्री मरुधरकेसरी जी म० के प्रवचन साहित्य को व्यवस्थित करके प्रकाशित कर जन-जन के हाथों में पहुंचाना |
यह सर्वविदित है कि श्री मरुधरकेसरी जी म० के प्रवचन बड़े ही सरस, मधुर, साथ ही हृदय को आन्दोलित करने वाले, कर्तव्यबुद्धि को जगाने वाले और मीठी चोट करने वाले होते हैं ।