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अभिनन्दन 'प्रवचन सुधा'
(मनहर छद) मिटाने को मोह माया, जग-जाल जलाने को श्रीखण्ड - सी प्रवचन-सुधा सुधा सम है। प्रमत्त न दमो दीह, मान खुला तोल देती वर रूप सिद्धि देती, मोक्ष ही के सम है। चमकते भाव-उडु, ज्योति को जगावे नित नहीं होती भव भीर ज्ञान भी न कम है। सुनि सुठि भाव मरुधर केशरी के मित, धाम धाम पहुचाना, 'सुकन' सुगम है ।
(हरिगीतिका) प्रवचन-सुधा का पात्र पाठक | ज्ञान से भरपूर है। आत्म - भाव प्रबोध करता, तम हटाता दूर है। पढलो समझलो कार्य मे, परिणत 'सुकन' कर लो जरा । मोक्षगामी हो अवसि, उपदेश है सच्चा खरा ॥ १ ॥