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धर्मकथा का ध्येय
.३५५ यदि हम उन पर हंसेंगे, तो कल वे भी हमारे ऊपर हंसेंगे । इसलिए हमें खुब सोच-विचार कर पारस्परिक कटुता व वैमनस्यता का भाव निकालकर एक वनना चाहिए । आज एक बने बिना जीवित रहना संभव नहीं है । आज जव परस्पर विरोधी और विरुद्ध धर्म, भाषा, वेपभूपा और सभ्यतावाले राष्ट्र भी परस्पर में समीप आ रहे हैं, तब हम सब जैन भाई तो एक ही देशवासी एक ही भापा-शापी, एक धर्म, संस्कृति और सभ्यता वाले और एक ही जाति के है। फिर हममें फिरकापरस्ती क्यों हो? क्यों हम एक दूसरे से लड़ें और एक दूसरे को अपना प्रतिद्वन्द्वी समझे ? हमें एक होकर अपने धर्म संघ, और जिन शासन के गौरव की रक्षा करनी चाहिए । हमारी धर्म कथा का यही मुख्य उद्देश्य है।
वन्धुलो, हमें सुदर्शन जैसे महापुरुषों की कथाएं सुननी चाहिए, जिससे धर्म पर श्रद्धा वढ़े और धर्म-धारण करने पर उसमें दृढ़ रहने की शिक्षा मिले । इसी कथा को सुनकर ही तो हमारे जयमलजी महाराज साहब की चित्तवृत्ति बदल गई और उन्होने साधुपना ले लिया था। इस प्रकार के स्वर्ग और मोक्षगामी पुरुपों की कथाए' ही सुकथाएं हैं--सच्ची कथाएं है । इनके अतिरिक्त जो अन्य राग-ट्रेप को बढ़ाने वाली कथाएं हैं, वे सब धिकथाएं है। विकथाओं के वैसे तो असंख्य भेद हैं । परन्तु आचार्यों ने उन्हें मुख्य रूप से चार प्रकार में विभक्त किया है--स्त्री कथा, भोजन कथा, देश कथा और राज कथा । स्त्रियों के हाव-भाव, विलास-विभ्रम और उनके व्यभिचार आदि की चर्चा करना, उनका सुनना, तथा नग्न नृत्यों वाले नाटक सिनेमादि का देखना स्त्री कथा है । नाना प्रकार के भोजन बनाने, उनके नाना प्रकार के देश-विदेश-प्रचलित खानपान के प्रकारों की चर्चा करना और खाने-पीने वालों की बात करते रहना भोजन कथा है । आज किस देश में क्या हो रहा है, किस देश के लोगों का पहिनावा-उढ़ावा कैसा है, उनका खान-पान और रहन-सहन कैसा है, इत्यादि की चर्चा करना देश कथा है । आज लोग इस चर्चा को ज्ञानवृद्धि का कारण मानते हैं और सुकथा समझते हैं, और इसी कारण जब देखो नाना-प्रकार के पत्र और पत्रिकाएं हाथ में लिए वांचा करते है, पर विवेकी और आत्म-हितैपी मनुष्य इस कथा को आत्मकल्याण में बाधक ही मानते हैं, अत: देश-विदेश की कथा करना भी विकथा ही है। चौथी विकथा राजकथा है। राजाओं के युद्धों की, उनके जय-पराजय की और भोग-विलास की चर्चा करना भी विकथा ही है। इसी प्रकार खेल-तमाशो की चर्चा करना, लोगों को हिंसा, आरम्भ और परिग्रह बढ़ाने वाली कथाएं करना, भी विकथा ही है । जिसे अपने आत्म