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धर्मकाथा का ध्येय
__ अर्थात्-भगवान की देशना रूप कथायें चार प्रकार की होती हैंआक्षेपणी, विक्षेपणी और संवेदनी और निवेदनी। जो नाना प्रकार की एकान्त दृष्टियों का और पर-मतों का निराकरण करके छह द्रव्य और नव पदार्थो का निरूपण करे, उसे आक्षेपणी कथा कहते है। जो प्रमाण और नयरूप युक्तियों के द्वारा सर्वथा एकान्तस्वरूप वादों का निराकरण करे, उसे विक्षेपणी कथा कहते हैं । पुण्य के वर्णन करने वाली कथा को संवेदनी कथा कहते
और पाप के फल का वर्णन करने वाली कथा को निवेदनी कया कहते हैं । अथवा संसार, शरीर और भोगों से वैराग्य उत्पन्न करनेवाली कथा को निवेदनी कथा कहते हैं ! जैसा कि कहा है ---
आक्षेपणी तत्त्वविधानभूतां विक्षेपर्णी तत्वदिगन्तशुद्धिम् । संवेगिनी धर्मफलप्रपंचां निर्वेदिनी चाह कयां विरागाम् ॥ आक्षेपणी कथा तत्त्वों का निरूपण करती है। विक्षेपणी कथा तत्त्वो में दिये जाने वाले दोपों की शुद्धि करती है। संवेदनी कथा धर्म का फल विस्तार से कहती है और निर्वेदिनी कथा वैराग्य को उत्पन्न करती है। ___मनुप्य के जीवन के लिए ये चारों ही कथायें उपयोगी हैं, अत: भगवान् ने इन चारों कथाओ का निरूपण किया है। देखो-मनुष्य के शरीर में जव कोई बीमारी घुल-मिल जाती है और डाक्टर या वैद्य लोग कहते हैं कि अमुक प्रकार के अभक्ष्य पदार्थो के सेवन करने से यह विकार उत्पन्न हो गया है अतः पहिले रेचक औषधि देकर उसे वाहिर निकालना होगा, उन अभक्ष्य मांस-मदिरा आदि का सेवन बन्द करना होगा और अमुक इंजेक्शन शरीरस्थ कीटाणुओं को समाप्त करना होगा। पीछे अमुक औपधि के सेवन से इसके शरीर का पोषण होगा। इसी प्रकार भगवान् ने भी बताया कि देखो-अन्यमतावलम्बियों के कथन से तुम्हारे भीतर जो मिथ्यात्व और अज्ञान उत्पन्न हो गया है, तथा हिंसादि पापरूप प्रवृत्ति से जो विकार पैदा हो गया हैं, पहिले उसे दूर करो पीछ यथार्थतत्त्वों का श्रद्धान कर अपने आचरण को शुद्ध करो तो तुम्हारी जन्म-जरा-मरण रूप बीमारी जो अनादिकाल से लगी हुई चली आ रही है, वह दूर हो जायगी। बस, इस प्रकार की धर्मदेशना को ही माक्षेपणी कथा कहते हैं ।
दूसरी कथा है विक्षेपणी। विक्षेप का अर्थ है-एक की बात को काट कर अपनी बात कहना ? जैसे किसी बीमार के लिए एक डाक्टर ने किसी दवा के सेवन के लिए कहा। तब दूसरा डाक्टर कहता है कि इसमें क्या