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सुनो और गुनो!
'धर्मप्रवण को आवश्यकता बन्धुओ, आप लोग अपने जीवन को कृतार्थ करने के लिए प्रभु की वाणी का श्रवण करना चाहते हैं । इसका उद्देश्य क्या है ? यह कि जिसे जिस वस्त को पाने की इच्छा होती है, वह उसे अन्वेषण करने का प्रयत्न करता है । जैसे रोग दूर करने के लिए किसी डाक्टर, वैद्य और हकीम को दूढना पड़ता है, मुकद्दमा लड़ने के लिए वकील, वैरिस्टर और सोलीसीटर को तलाश करना पड़ता है और व्यापार करने के लिए व्यापारी, आड़तिया और दलालो की छानबीन करनी पड़ती है। इसी प्रकार से आत्मसाधन के लिए प्रभु की वाणी का सुनना सर्वोपरि माना गया है। सुनने से ही हमे यह ज्ञात होता है कि यह वस्तु उच्चकोटि की है, यह मध्यम श्रेणी की है और यह अधम है। इन सव बातो का विचार तभी सभव है, जव कि हम सुनने के लिए उद्यत होते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि -
सोच्चा जाणइ फल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं ।
उभय पि जाणई सोच्चा, ज सेयं त समायरे । मनुष्य सुनकर ही जानता है कि यह कल्याण का मार्ग है और सुनकर ही जानता है कि यह पाप का मार्ग है । सुनने से ही दोनो मार्गों का पता चलता है। मार्ग दो है-एक धर्म का, दूसरा अधर्म का, एक मोक्ष का दूसरा ससार
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