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आर्यपुरुष कौन ? अहिंसा धर्म के अनुयायी है और उसी के पुजारी हैं, वे स्वयं मार खा लेते हैं, परन्तु बापिस मुकाविला नही करते हैं।
भाइयो, कसी भी परिस्थिति आवे, उसे शान्ति से वैठकर और परस्पर में विचार-विनिमय करके सुलझाना चाहिए, तभी सनातनी आर्य कहला सकते हैं और जैनी जैन कहला सकते हैं, अन्यथा नही ।
आज विचारों के आदान-प्रदान का युग है कोई भी आकर यदि अपने विचार सुनाता है तो हमे शान्तिपूर्वक सुनना चाहिए। यदि उसके विचार मापको श्रेष्ठ प्रतीत हो तो स्वीकार कर लेना चाहिए और यदि रुचिकर न लगे तो नही मानता चाहिए । परन्तु यह कहां का न्याय है कि हम औरों पर दवाव डाल कर कहें कि जैसा हमारे मत मे कहा है और जैसा हम कहते हैं, वैसा ही सवको मानना पड़ेगा। यह वात न ही कभी ऐसी हुई है और न अभी या आगे हो हो सकती है सनातनियों के भीतर ही देखो - परस्पर में सैकड़ों ही वातों में मतभेद है। रामायण में भी कितने ही स्थलो पर बाल्मीकि कुछ कहते हैं और तुलसीदास कुछ और ही कहते है। दोनों में दिन-रात जैसा अन्तर है। कबीरपन्थियो ने राम को काल कहा है और उसके ऊपर राम पच्चीसी बनाई है। वहां पर तो इन धर्म के ठेकेदारों को बोलने की हिम्मत आज तक भी नहीं हुई। किन्तु सारी शक्ति आज उनकी 'अग्नि-परीक्षा के ही ऊपर लग रही है, मानों उसमें सनातनियों के प्रति विप ही विप वमन किया गया हो ? अग्नि-परीक्षा को छपे हुए आज कई वर्ष हो गये है। परन्तु अभी तक उनकी नीद नही खुली थी। आज ही उनकी आंख खुली है ! आज सनातनी हिन्दुओं के आचार्य कहते है कि हम भारत में राज्य कर रहे हैं। भाई, मैं उनसे पूछता हूँ कि यदि सचमुच उनका राज्य हो जाय तो क्या वे सिक्खों, जैनियों और अपने से विभिन्न धर्मानुयायियों को क्या घानी में पील देंगे? उन्हे ज्ञात होना चाहिए कि आज प्रजातत्र का युग है, नादिरशाही का जमाना नहीं है। किसी एक व्यक्ति के द्वारा यदि किसी महापुरुष के प्रति कोई अपमानजनक शब्द लिख या बोल दिया जाता है, तो उससे उस महापुरुप का अपमान नही हो जाता है। सौ टंच के सोने को यदि कोई कीचड़ में डाल देगा, तो क्या वह सौ ढंच का नहीं रहेगा ? इसलिए आज हमें बड़े विवेक से काम लेना चाहिए और किसी पक्ष को अपने मति भ्रम से कमजोर जानकर उस पर अन्याय नही करना चाहिए । यदि कोई हमारी खामोशी और अहिंसक मनोवृत्ति का अनुचित लाभ उठाता है तो हम सब जैनियों को सम्प्रदायवाद